सजीव :-ऐसे प्राणी जिनमे जीव पाया जाता है जिनमे गति,श्वसन,जनन इत्यादि पाया जाता है।जैसे :-पेड -पौधे (वनस्पति)जीव -जन्तु(प्राणी)
निर्जीव :- ऐसे पदार्थ जिनमे जीव नही पाया जाता है तथा गति,श्वसन, जनन आदि क्रिया नही होती है उन्हे निर्जीव कहते है। जैसे :-लकडी,पत्थर,आदि।
पोषण के प्रकार :-
➊स्वपोषी पोषण:- इसमें जीव अपना भोजन स्वंय प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा कच्चे पदार्थ जैसे(CO2) व(H2O) तथा सूर्य के प्रकाश एवं क्लोरोफिल से बनाते है जो स्टॉर्च के रूप में पौधो में संचित रहता है।
चित्र -पत्ती की अनुप्रस्थ काट
➋ विषमपोषी पोषण :-इस पोषण में जीव अपने भोजन के लिए अन्य जीवों पर आश्रित रहते है और स्वयं भोजन तैयार नहीं करते है इन्हें परजीवी व विषमपोषी पोषण कहते है।
जैसे :-शाकाहारी जीव पौधों पर निर्भर रहते है।
उदाहरण :-अमरबेल ,जौक ,लिवरफुल इत्यादि।
मानव में पोषण। आहार नाल की संरचना।
मनुष्य में पोषण :-
1 पाचन तंत्र :-मनुष्य का पाचन तंत्र एक जटिल संरचना है। जिसको अध्ययन की दृष्टि से तीन भागों में विभाजित कर सकते है।
(A)आहार नाल की संरचना
(B)पाचन ग्रन्थि
(C)पाचक एन्जाइमों में पाचन
(A)आहार नाल की संरचना :- मनुष्य के पाचन तंत्र में विभिन्न अंग भोजन का पाचन करने हेतु एक श्रृंखला में जुड़कर एक नलिकाकार संरचना बनाते है उसे आहारनाल कहते है। इसमें निम्न भाग होते है।
नोट :- जीवित मुनष्य में आहार नाल की लम्बाई 4 मीटर होती है।
➀मुख ➜मनुष्य के सिर के अग्र सतह पर एक अनुप्रस्थ दरार के रूप में एक मुख छिद्र पाया जाता है। मुख पीछे की ओर एक गुहा में खुलता है। उसे मुख गुहा कहते है।
➁ग्रसनी➜मुख गुहिका का पश्च भाग एक चिकनी,लसलसी गुहा में खुलता है। जिसे ग्रसनी कहते है। इसमें लार ग्रन्थियाँ आकर खुलती है।
➂ग्रसिका➜यह एक लचीली नलिका रूपी संरचना होती है। जो ग्रसनी से लेकर आमाशय से जुड़ी रहती है। इसकी लम्बाई 25 सेन्टीमीटर होती है।
➃आमाशय➜ यह एक थैले जैसी संरचना होती है। जो उदर गुहा में बायीं ओर तनपुट के नीचे स्थित होता है। इसके अग्र भाग में एक अवरोधनी (वाल्व)पाया जाता है। जो भोजन को ग्रसिका से आमाशय में तो आने देता है। परन्तु आमाशय से ग्रसिका में नहीं जाने देता है।
➄ग्रहणी➜आमाशय का पश्च भाग एक U आकर की नलिका में खुलता है। जिसे ग्रहणी कहते है इसमें अग्नाशय ग्रन्थि से अग्नाशय वाहिनी व यकृत से पित वाहिनी आकर खुलती है इनसे निकलने वाला पाचक रस भोजन का पाचन करता है ग्रहणी से दो प्रकार के रस निकलते है।
1.पितरस liver(यकृत)से आता है।= bile juice
2.अग्नाशय के द्धारा अग्नाशय रस=Penereatic Juice आता है।
➅छोटी आंत➜ ग्रहणी का पश्च सिरा एक लम्बी पतली कुण्डलित नलिका बनता है जिसे छोटी आंत कहते है भोजन का शेष पाचन छोटी आंत में होता है।
⑦ बडी आंत ➜छोटी आंत का पश्च सिरा लम्बी कुण्डलित बडी नलिका में खुलता है जिसे बडी आंत कहते है बडी आंत व छोटी आंत के सन्धि स्थल पर एक अंगुली रुपी नलिका जुडी होती है उसे अंधनाल या परिशोषिका कहते है। यह अवशेषी अंग है।
➇मलाशय ➜बडी आंत का पश्च भाग एक थैली नुमा संरचना बनाता है जिसमे अपचित भोजन का अस्थाई संग्रह होता है जल का पुनः अवशोषण भी होता है।
➈मलद्वार➜ यह आहार नाल का अंतिम भाग होता है जिसके द्वारा समय -समय पर मल का उत्सर्जन किया जाता है। चित्र- मानव में पाचन तंत्र
मानव श्वसन क्या है।
मानव मे श्वसन तंत्र ➔मनुष्य मे पाये जाने वाला वह तंत्र जिसके द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण की जाती है तथा कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जित कि जाती है इसे श्वसन तंत्र कहते है।
श्वसन प्रकिया को दो भागो में विभाजित किया जाता है।
(A) बाहय श्वसन
(B) अन्त श्वसन या कोशिकीय श्वसन
(A) बाहय श्वसन➔फेफडो द्वारा श्वसन मार्ग से वायुमण्डल में से ऑक्सीजन ग्रहण करना तथा कार्बन डाईऑक्साइड को बाहर निकालने की क्रिया बाहय श्वसन कहलाती है।
नोट :-यह दो प्रकार का होता है।
(a) निःश्वसन➔वायुमंडल से वायु(ऑक्सीजन)ग्रहण करना जिससे वक्ष-गुहा का आयतन बढ जाता है।
(b) उच्च श्वसन➔ वायुमंडल से ग्रहण की गई वायु (Co2)को बाहर छोड़ना जिस पथ से फेफड़ों में प्रवेश करती है। तथा वक्ष -गुहा का श्वसन तंत्र आयतन घट जाता है।
(B) अन्त श्वसन या कोशिकीय श्वसन ➔रक्त परिसंचरण के माध्यम से ऑक्सीजन का कोशिकाओं तक पहुँचना तथा कोशिका में भोजन का ऑक्सीकरण करना तथा(Co2)को फेफड़ों तक पहुँचना अन्तः श्वसन कहलाता है।
श्वसन तंत्र ➔ मनुष्य के श्वसन हेतु विभिन्न श्वसनांग एक श्रृंखला में जुड़कर श्वसन की क्रियापूर्ण करते है। जिसे श्वसन तंत्र कहते है।
❶नासा द्वार ➔ मनुष्य के अग्र पृष्ट भाग पर एक संरचना पाई जाती है। जिसे नाक कहते है।इसकी पृष्ट सतह पर अन्दर की और दो छिद्र पाए जाते है।जिसे नासा छिद्र कहते है।
❷नासा गुहा ➔ दोनों नासा छिद्र के पश्च भाग एक गुहा में खुलते है।जिसे नासा गुहा कहते है। जिसकी आन्तरिक सतह पर रोम उपस्थित होते है। यह वायु को फिल्टर करना का कार्य करती है।
❸नासा मार्ग ➔यह एक लम्बी कुण्डलाकार नलिका क्षेत्र होता है। जो अस्थिओं के द्वारा बनाया जाता है। तथा यह मार्ग वायु मण्डल की वायु को शरीर के तापक्रम तक नियमित करती है।
❹श्वसन नली ➔यह एक लम्बी नलिका होती है जो ग्रीवा क्षेत्र में पाई जाती है इसकी आन्तरिक सतह पर अर्द्धवृत्ताकार उपास्थि या छल्ले पाये जाते है जो श्वसन नली को पिचकने से रोकते है।
❺फेफडे ➔मनुष्य की वक्ष गुहा में हृदय के पास दो फेफडे स्थित होते है जो क्रमश दाया व बाया फेफडा कहलाता है दाया फेफडा तीन व बाया फेफडा दो पालियो में विभक्त होता है प्रत्येक फेफडे में एक श्वसन नली प्रवेश करती है जो उत्तरोहर विभाजित होकर द्वितीयक तृतीयक श्वसन नली एवं श्वसनीकाए बनाती है जो प्रत्येक कूपीकाओ तक पहुँचती है। प्रत्येक फेफडो में कूपीकाओ की संख्या अंसख्य होती है। तथा प्रत्येक कुपिका अत्यंत सूक्ष्म प्याली नुमा संरचना होती है। जिसकी पतली भित्तीओ में रुधिर कोशिकाओ का जाल होता है। जो कुपिकाऐ गैस विनिमय का कार्य करती है।
मानव ह्रदय क्या है।हदय की संरचना ➔मनुष्य में वक्ष गुहा में थोड़ी बायीं ओर एक पेशीय रचना पाई जाती है। उसकी आकृति बंद मुढ़ी के समान होती है। जिसके चारो ओर एक आवरण पाया जाता है। जिसको हदय आवरण कहते है। जो दोहरी क्षिल्ली से निर्मित होते है। हदय आवरणों के मध्य एक द्रव्य पदार्थ भरा होता है। जिसे परिहदयवरनी द्रव्य कहते है। हदय में चार कक्ष होते है। जिसमे दो ऊपर के पतली भित्ति वाले छोटे कक्ष आलिन्द तथा नीचे के मोटी भित्ति वाले कक्ष निलय कहलाते है। इनके बीच कपाट पाये जाते है।
चित्र-मानव ह्रदय
शिराएँ Vein ➔मनुष्य के परिसंचरण तंत्र में पाई जाने वाली ऐसी नलिकाकार संरचनाऐ जिसने के द्वारा शरीर के विभिन्न भागो से अशुद्ध रक्त को हृदय तक लाया जाता है। शिराऐ कहलाती है।
विशेषताएँ :-1 ये पतली भित्ती एवं अधिक व्यास
वाली नलिकाऐ होती है।
2
ये त्वचा skin की सतह पर स्थित होती है।
3 इसमे कपाट पाये जाते है।
4 इनमे
संकुचन की क्षमता नही होती है।
5 इनका रंग नीला होता है।
6 इनमे अशुद्ध रक्त बहता है। |
धमनी Artrse ➔मनुष्य के परिसंचरण तंत्र में पाई जाने वाली नलिकाकार संरचना जिनकी भित्ती मोटी संकुचनशील होती है तथा अन्दर का व्यास कम होता है धमनीयाँ कहलाती है।
विशेषताएँ :-1 ये त्वचा की गहराई में स्थित होती
है। 2 इनकी भित्ती मोटी तथा व्यास कम
होता है। 3 इनमे कपाट अनुपस्थित होते है।
4 इनकी भित्ती में संकुचन पाया जाता
है।
5 इनका रंग गहरा लाल होता है। 6 इनमे शुद्ध रक्त का प्रवाह होता है। |
लसीका ➔यह एक रंगहीन तरल द्रव्य होता है जो रुधिर कोशिकाओ की भित्ती से चढकर उतको में आता है इसलिए इसे अन्तराली तरल भी कहते है। इस तरल में लसिका प्रोटीन ,लसिका अणु व वसा की पर्याप्त मात्रा होती है। इसके अतिरिक्त इसमे श्वेत अणु पाये जाते है लसिका ,लसिका कोशिकाओ में संचित होता है जहाँ से लसिका वाहिनी द्वारा अंतरागों में पहुँचाता है।जहाँ यह अंतरागों के पोषण के साथ -साथ हानिकारक रोग से सुरक्षा करता है।
मानव उत्सर्जन तंत्र।
❶वृक्क/गुर्दे/किड़नी(kideny)
❷मूत्र
वाहिनी
❸मूत्राशय
❹मूत्रमार्ग |
नेफ्रोन के भाग |
| कार्य |
1 ग्लोमेरूलस | अल्ट्राफिल्टेरेशन का | |
2 बोमन कप | फिल्टर
हुए
तरल
का वेग प्राप्त करना | |
3 निकटस्थ संवालित नलिका | 2/3 भाग पानी,ग्लूकोज(सोडियम क्लोराइड)अम्ल क्षार के आयन का शोषण | |
4 लूप ऑफ़ हेनले | बाकि
पानी,ग्लूकोज आयन का शोषण | |
5 दूरस्थ संवालित नलिका | अवशोषण,एवं अन्य रासायनिक तत्वों का मिलन |
चित्र- वृक्काणु की संरचना
नोट➔ (ⅰ)ग्लोमेरुलस की कोशिकाओं से द्रव के छन कर बोमेन सम्पुट की गुहा में पहुँचने की प्रकिया को परानिस्पंदन कहते है।
(ⅱ)मूत्र का हल्का पीला रंग यूरोक्रोम वर्णक के कारण होता है।
(ⅲ)मूत्र अम्लीय होता है PH मान 6 होता है।
(ⅳ)किडनी में बनने वाली पथरी केल्शियम ऑक्जलेट की बनी होती है
(ⅴ)सामान्य मूत्र में 95 %जल ,2%लवण ,2.7%यूरिया एवं 0.3%यूरिक अम्ल होता है।
मानव में ब्लड प्रेशर। ये कितने प्रकार का होता है।
ब्लड प्रेशर➔ हमारे शरीर में Heart एक पम्प का कार्य करता है। जो एक दबाब पर कार्य करता है ब्लड प्रेशर दो प्रकार से मापते है।
(A)सिस्टोलिक :-इसमें Heart blood को पूरा बाहर निकालता है इसका Heart दाब 120/80 होता है।
(B)डायस्टोलिक➔ एक सामान्य सीमा तक Heart में blood चलता रहता है ये 70 -90 होता है।
सिस्टोलिक:- 100 -140 mm of Hg
डायस्टोलिक :-70 -90 mm of Hg
रक्तदाब मापने का यंत्र➔स्फिग्मोमेनोमीटर
नोट ➔अनुनाद पर कार्य करता है।
अवायवीय श्वसन /अनॉक्सी श्वसन➔ वायु की अनुपस्थिति में ग्लूकोज का इथाइल एल्कोहल व Co2 तथा ऊर्जा में विघटन को अवायवीय श्वसन कहते है।
नोट :- इसके सम्पूर्ण प्रक्रम को ग्लाइकोलाइसिस कहते है। अनॉक्सी श्वसन के अंत में पाइरुविक अम्ल बनता है।
पादपों में परिवहन। जाइलम एवं फ्लोएम क्या है।पादपों मे परिवहन➔पौधे अपना भोजन प्रकाशसंश्लेषण अभिक्रिया द्वारा क्लोरोफिल की उपस्थिति मे स्वंय बनाते है। पौधों में पदार्थो का अवशोषण जड़ों द्वारा होता है। जिसमें नाइट्रोजन,फॉस्फोरस,तथा दूसरे खनिज लवणों के लिए मृदा प्रचुरतम स्रोत है।
जल का परिवहन➔पौधों में जल परिवहन के लिए जल संवहन वाहिकाओं का एक सतत जाल पाया जाता है। जिसके कारण पदार्थो का आवागमन होता है जल परिवहन तंत्र में विभिन्न भाग पाए जाते है। जो निम्न प्रकार है।
(A) जाइलम➔यह संवहनी ऊतक है। इसके दो मुख्य कार्य है।
1 जल एवं खनिज लवणों का संवहन।
2 यांत्रिक दृढ़ता प्रदान करना।
नोट➔पौधों की आयु की गणना जाइलम ऊतक के वार्षिक वलय को गिनकर की जाती है। इसे प्रायः काष्ट भी कहते है।
(B)फ्लोएम➔यह भी एक संवहनी ऊतक है। इसका मुख्य कार्य पत्तियों द्वारा बनायें गए भोजन को पौधों के अन्य भागों में पहुँचाना है।
❶वृक्क/गुर्दे/किड़नी(kideny)➔मनुष्य मे एक जोडी वृक्क उदर गुहा मे डायफ्रिम के नीचे व केरूदण्ड के दोनो ओर स्थित होता है। ये आमने -सामने ना होकर थोड़ी ऊपर नीचे व बायां वृक्क दाये वृक्क से थोडा बड़ा होता है।इसकी संरचना निम्न प्रकार है।
बाहय संरचना ➔प्रत्येक वृक्क का आकार सेम के बीज व लाल रंग का होता है। इसकी एक तरफ की पाश्र्व अन्दर की ओर धँसी रहती है जिसे हालयिम कहते है जिससे होकर वृक्क शिरा व वृक्का धमनी प्रवेश करती है तथा मूत्रवाहिनी बाहर निकलती है।
नोट :-प्रत्येक वृक्क पर एक टोपीनुमा संरचना पाई जाती है उसे अधिवृक्क ग्रन्थि या एड्रिलन ग्रन्थि कहते है।जो अन्तःस्रावी ग्रन्थि है।
आन्तरिक संचरना ➔वृक्क की लंबवत काट के अनुसार इसमें दो स्पष्ट भाग दिखाई देते है।
(A) वल्कुटCortex
(B) मध्यांश Medulla
❷मूत्र वाहिनी➔प्रत्येक वृक्क से एक-एक नलिका रुपी संरचना बाहर निकलती है जिसे मूत्र वाहिनीयाँ कहते है ये मूत्र को मूत्राशय में ले जाती है।
❸मूत्राशय➔ यह एक संकुचनशील पेशिया भित्ती युक्त थैलीनुमा संरचना होती है जिसमे मूत्र का अस्थाई सग्रंहण होता है मूत्राशय में लगभग 700-800ml मूत्र संचित होता है।
❹मूत्रमार्ग➔मूत्राशय के पश्च भाग एक नली रुपी झिल्ली नुमा मूत्र मार्ग द्वारा मूत्राशय बाहर की ओर खुलता है जिसके द्वारा मूत्र का उत्सर्जन समय-समय पर किया जाता है।
चित्र-मानव में उत्सृर्जन तंत्र
नेफ्रोन व वृक्क नलिका ➔मनुष्य के प्रत्येक वृक्क में दस से बारह लाख सुस्कंदन व कुण्डलित नलिका पाई जाती है जिनको वृक्क नलिकाऐ या नेफ्रोन कहते है। जो वृक्क की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई होती है नेफ्रोन को तीन भागो में विभाजित किया गया है।
1मैलपीघी सम्पुट/बोमन सम्पुट
2 ग्रीवा
3 स्रावी नलिका
वायवीय श्वसन /ऑक्सीश्वसन ➔ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोज अणु का कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल में विघटन होना वायवीय श्वसन कहलाता है।
⟾रन्ध्रों के खुलने की प्रक्रिया प्रकाश संश्लेषण के कारण होती है।क्योंकि दिन के समय प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती है। जिसके कारण कोशिका में कोशिका द्रव्य में परासरण दाब अर्थात विसरण दाब न्यूनता बढ़ जाता है।
⟾रन्ध्रों के बन्द होने की प्रक्रिया रात्रि के समय प्रकाश संश्लेषण नही होने के कारण होती है। जिसे शर्करा का निर्माण नहीं होता है। तथा बनी हुई शर्करा, स्टार्च में रूपान्तरित होने लगती है। तथा परासरण दाब घट जाता है।
⟾ रन्ध्रों खुलने तथा बन्द होने का सिद्धान्त स्टार्च -शर्करा परिवर्तन मत सिंद्धात पर आधारित है। जो लाँपड नामक वैज्ञानिक ने दिया था। www.learningscienceclass.blospot.com
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