दाँत क्या है। दांतों के प्रकार।
दाँत (Teeth) :- ये बाहयमध्यश्चर्म से उत्पन्न संरचना है। जो भोजन को चबाने,पीसने (मेस्टीकेशन/लुगदी)बनाने में सहायता करते है। ऊपरी जबड़े के दाँत मैक्सिलेरी दाँत कहलाते है। जो की ये मेक्जिला अस्थि पर होते है। और निचले जबड़े के दाँत मैण्डिबल अस्थि से जुड़े रहते है। अंतः मैण्डीबुलर दाँत कहलाते है।
दाँतो की संरचना :- दाँतो को तीन भागों में विभाजित करते है।
❶जड़ (Root) :- यह दाँत का निचला भाग होता है। जो अस्थि के सॉकेट या गर्त या कुपिका में स्थित होता है। इसके नीचे के भाग में एक छिद्र होता है। जिसमे से होकर तंत्रिका तंतु एवं रक्त कोशिकायें प्रवेश करती है।
❷ग्रीवा (Neck):- जड़ तथा शिखर के मध्य का छोटा सा भाग जो मसूड़ों से घिरा होता है। मसूड़े दाँतो को मजबूती प्रदान करते है।
❸ शिखर या क्राउन (Apex or crown ) :- यह दाँत का अग्र भाग होता है। जो मसूड़ों से बाहर निकला होने के कारण दिखाई देता है। इसकी सबसे बाहरी परत कठोर चमकीली होती है। जो दाँत का बाहय आवरण बनाती है। जिसे इनैमल कहते है। इनैमल परत एक्टोडर्मल,एमीलोब्लास्ट या इनेमेलोब्लास्ट कोशिकाओं के द्वारा स्त्रावित की जाती है। इसका निर्माण 92%अकार्बनिक पदार्थो से होता है। तथा यह मनुष्य के शरीर का सबसे कठोर भाग होता है।
👉दाँत के अंदर एक छोटी गुहिका होती है। जिसे पल्प गुहिका कहते है। इसमें रुधिर वाहिनी,लसिका वाहिनी,तंत्रिका तंतु तथा संयोजी ऊतक आदि पाए जाते है। जो ओडोन्टोब्लास्ट या ओस्टिओब्लास्ट कोशिकाओं को पोषण प्रदान करते है।
👉ओडोन्टोब्लास्ट कोशिकाओं की उत्पति मीजोड़र्म से होती है। ये कोशिकाये पल्प कैविटी को घेर कर रखती है। ये कोशिकाएँ डेन्टाइन का स्त्रावण करती है।
👉स्तनियों में दाँतो ka अधिकांश डेन्टाइन भाग का बना होता है। डेन्टाइन अकार्बनिक पदार्थो (62-69%) की परत है।
👉 दाँत में कैल्शियम फास्फेट(85%),कैल्शियम हाइड्रोक्साइड [Ca3(PO4)2 Ca(OH)2H2O] तथा कैल्शयम कार्बोनेट नामक अकार्बनिक पदार्थ पाए जाते है। सीमेंट या सीमेन्टम के द्वारा दाँतो की जड़े हनु अस्थि पर जुडी रहती है।
दाँतो का विभेदीकरण :- आकारिकी के आधार पर दाँत दो प्रकार के होते है।
(A) समंदति :- ऐसे दाँत जो सरंचनात्मक तथा कार्यात्मक दोनों दृष्टि से समान होते है।
(B) विषमदंति :- ऐसे दाँत संरचात्मक तथा कार्यात्मक दृष्टि से भिन्न होते है। ये चार प्रकार के है। इन्साइजर ,कैनाइन ,प्रीमोलरतथा मोलर।
(a) कृन्तक (Incisors) :- ये एक जड़ वाले एकल उभार वाले लम्बे मुड़े हुए नुकीले सिरे युक्त होते है। ये भोजन को कतरने व काटने में सहायक होते है। इनकी संख्या 8 होती है।
(b)रदनक(Canines):- कृन्तक दाँतो के बाद प्रत्येक ऊपरी तथा निचले अर्धजबड़े में एकल नुकीले सिरे वाले दाँत है। ये चीरने फाड़ने व सुरक्षा करने में सहायक है। इनकी संख्या 4 होती है।
(c)अग्र चवर्णक(Premolars) :- इनमे एक जड़ पायी जाती है। व दो उभार युक्त दाँत है। ये दाँत भोजन को तोड़ने,पीसने तथा चबाने में सहायक है। इनकी संख्या 8 होती है।
(d) चवर्णक (Molars) :- इनमे दो या अधिक जड़े होती है ये 4 उभार वाले होते है।
दाँतो का जुड़ाव (Attachment ऑफ़ teeth):- जबड़े की अस्थियों पर दाँतो के जुड़ने के प्रकार के आधार पर दाँतो को निम्न भागो में बाटा गया है।
(a) अग्रदंति (Acrodont):- इस प्रकार के दाँत जबड़े की अस्थि के स्वंतत्र तल या शिखर से संग्लन रहते है। जैसे शार्क तथा मेंढ़क में। ऐसे दाँतो में आसानी से टूटने की प्रवृति होती है।
(b) पार्श्वदंति (Pleurodont):- ऐसी स्थिति सामान्यतः छिपकलियों में पाई जाती है। इस दशा में दाँत अपने आधार पर जबड़े की अस्थि पर भीतर की और पार्श्व तल पर जुड़े होते है।
(c)गर्तदंति (Thecodont):- ऐसे दाँत स्तनियों के विशिष्ट लक्षण में से है। दाँतो में भलीभाँति विकसित जड़े होती है। जिनसे वे जबड़े की अस्थि में बने अलग अलग गहरे गडढो या एलिवयोलाई में धसे होते है।
दाँतो का अनुक्रमण (Succession of teeth) :- अपने स्थायित्व अनुक्रम के आधार पर दाँतो को तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते है। पॉलिफायोडाँन्ट,डाइफायोडॉण्ट एवं मोनो फायोडॉण्ट।
(a)बहुबारदंति(Polyphyodont) :-निम्न कशेरुकियों में दाँत जीवन में कई बार टूटते तथा पुनः विकसित होते है।
उदारहण मछलियाँ,एम्फीबिया,रेप्टीलिया।
(b)द्विबारदंति (Diphyodont) :- अधिकांश स्तनियों में दाँत दो बार विकसित होते है। इस दशा को डाइफायोडॉण्ट कहते है। दाँतो का पहला सेट झड़ने वाले /गिरने वाले या दूध के दाँत (लैक्टियल टीथ) कहलाता है। तथा दूसरा सेट स्थायी या परमानेंट दाँत कहलाता है।
(c)एकबार दंति (Monophyodont) :- कुछ स्तनियों में दाँतो का सिर्फ एक सेट विकसित होता है। यह दशा मोनोफायोडान्ट कहलाता है। दाँत सूत्र (Dental formula):- मनुष्य में दाँतो की एक निशिचत संख्या व विन्यास को दर्शाता है। तथा जातियों में भिन्न भिन्न होने के कारण दाँत विन्यास का वर्गिकी महत्व होता है।
मनुष्य (दूध दन्त समुच्चय) 2102 /2102 ×2 = 20
मनुष्य (वयस्क दन्त समुच्चय ) :- 2123 /2123×2 = 32
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