कोशिका कला : सजीव कोशिकाओं के चारों ओर पाई जाने वाली पतली ,प्रत्यास्थ ,जीवित ,लचीली ,जलरागी ,चयनात्मक पारगम्य तथा झिल्ली बद्ध सरंचना को कोशिका कला कहते है। जिसे प्लाज्मा झिल्ली भी कहते है। यह प्रोकेरियोटिक तथा यूकेरियोटिक दोनों प्रकार की कोशिकाओं में पायी जाती है।
कोशिका कला शब्द का प्रयोग नागेली तथा क्रोमर (1885) ने किया। प्लोव (1931) ने प्लाज्मालेमा शब्द का प्रयोग किया। सभी कलाओं की सरंचना व संगठन में समानता के कारण रॉबर्टसन (1959) ने इकाई कला शब्द का प्रयोग किया। सिंगर व नेक्लसन नामक वैज्ञानिकों ने इसकी सरंचना बताई।
प्लाज्मा झिल्ली की विशेषता :
1 यह पतली झिल्लीबद्ध दोहरी इकाई झिल्ली है।
2 यह अर्द्धपारगम्य झिल्ली की भाति व्यवहार करती है।
3 कोशिका कला प्रोटीन ,वसाओं से निर्मित होती है।
4 कोशिका कला सभी कोशिकागों के चारों ओर पाई जाती है।
5 कोशिका कला रूपान्तरित होकर विभिन्न प्रकार की संरचना बनाती है। जैसे माइक्रोबिलाई ,डेस्मोसोम्स ,टिनोफाईब्रिल्स आदि।
संरचना : अत्यन्त पतली होने के कारण कोशिका कलाएँ प्रकाश सूक्ष्मदर्शी में दिखाई नहीं देती है। ऐसे इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है। यह इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप में त्रिस्तरीय परत के रूप में दिखाई देती है।
⇒ रासायनिक रूप से एक कोशिका कला में प्रोटीन (44-76%),लिपिड्स (20-53%),कार्बोहाइड्रेट्स (1-5%),जल (20%)होता है। DNA ,RNA अनुपस्थित होते है।
⇒ कोलेस्टरॉल कोशिका कला को कठोरता तथा स्थायित्व प्रदान करता है। कोशिका झिल्ली का निर्माण प्रोटीन तथा फास्फोलिपिड्स के द्धारा होता है।
(A)प्रोटीन : कोशिका झिल्ली की बाहरी एवं आन्तरिक परत का निर्माण प्रोटीन के द्धारा होता है। जिसकी मोटाई 30A० होती है।कोशिका झिल्ली में उपस्थित प्रोटीन्स दो प्रकार के होते है।
(1) बाहय प्रोटीन्स : यह परिधीय प्रोटीन (कुल प्रोटीन का 30%)है। ऐसे आसानी से हटाया जा सकता है। Eg : RBC में स्पेक्ट्रिन,ATPase.
(2)आन्तरिक प्रोटीन: यह कुल प्रोटीन का लगभग 70%होती है। इन्हें आसानी से पृथक नहीं किया जा सकता। Eg : साइटोक्रोम ऑक्सीडेज ,पोरिन प्रोटीन्स।
(B)फास्फोलिपिड्स : दोनों प्रोटीन परतों के मध्य फास्फोलिपिड्स होते है। जिसमे दोनों तरफ जल स्नेह तथा बीच में जलविरागी भाग स्थिति होते है। जिसकी मोटाई लगभग 45A०होती है। इस प्रकार इकाई झिल्ली की कुल मोटाई 75A० होती है।
कोशिका झिल्ली के मुख्य बिन्दु →
1 फास्फोलिपिड सामान्यता एक एकलपरत से दूसरी ओर की एकलपरत में अणुओं का आदान प्रदान करती है। इसे फ्ल्पि -फ्लॉप गति कहा जाता है।
2 प्रोटीन व लिपिड दोनों घूर्णन तथा झिल्ली में पाश्वीय विसरण दर्शाते है।
3 ग्लाइकोप्रोटीन व ग्लाइकोलिपिड प्रतिजन विशिष्टता प्रदान करते है। जैसे RBC प्रतिजन
4 कोशिका झिल्ली विभेदी पारगम्य है।
5 परमिएज ,ट्रॉसलोकेज आदि पदार्थो के परिवहन के लिये वाहक की भूमिका निभाते है।
कोशिका झिल्ली का रूपान्तरण : जन्तुओ में कोशिका झिल्ली कुछ विशेष कार्य करने हेतु संरचानत्मक एवं क्रियात्मक रूप से बदल जाती है। जिसे कोशिका कला रूपान्तरण कहते है। जो निम्नलिखित है।
(1)माइक्रोविलाई: यह उंगलियों के सद्र्श सरंचना होती है। जिसकी लम्बाई (6-8µm)जो कोशिका की सतह पर पाए जाते है। इसे ब्रश बार्डर भी कहते है। यह आंत्रीय कोशिका ,यकृत कोशिका और मूत्र वाहिकाओं में अवशोषण का कार्य करती है। आंत्रीय एपिथीलियम में माइक्रोविलाई दीर्घाकार होती है। इसमें माइक्रोफिलामेंट ,एकिटन ,मायोसिन और,स्पेक्ट्रिन का जल फैला होता है। और यह पृष्ठीय क्षेत्रफल को बढ़ाता है।
(2)डेस्मोसोम्स : कोशिकाओं को यांत्रिक सामर्थ बढ़ाने हेतु कोशिका झिल्ली पर अनेक घागेनुमा सरंचना बनती है। जिसे डेस्मोसोम्स कहते है। Eg :स्तरित शल्कीउपकला
(3)इंटरडिजिटेशन्स: कोशिकाओं में निकटतम सम्पर्क बनाने के लिए कभी - कभी कोशिका झिल्ली पर प्रवर्ध बन जाते है। जिने इंटरडिजिटेशन्स कहते है।
प्लाज्मा /कोशिका कला के कार्य : कोशिकाओं की सर्वप्रथम महत्वपूर्ण परत प्लाज्मा कला होती है। इसके निम्नलिखित कार्य होते है।
1 कोशिका झिल्ली कोशिका को निश्चित आकृति एवं आकार प्रदान करती है।
2 जीवद्रव्य को घेरकर उसकी सुरक्षा करती है।
3 इसमें चयनात्मक पारगम्यता का गुण पाया जाता है। जिसके द्धारा एक कोशिका से दूसरी कोशिका में पदार्थो का सवंहन निम्न दो प्रकार की क्रियाओ के द्धारा होता है।
(A) निष्क्रिय परिवहन : इसमें पदार्थो का स्थान्तरण अधिक सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर होता है। अर्थात इसमें बाहरी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसमें निम्न विधियाँ शामिल होती है।
(a) विसरण (b) परासरण (c) सुगमित विसरण
(B) सक्रिय परिवहन : इसमें सान्द्रण विभव के विपरित पदार्थो के अणु अपनी कम सान्द्रता से अधिक सान्द्रता की ओर गति करते है। इस क्रिया के लिए अधिक ऊर्जा की आवशयकता होती है। इसमें ATP ख़र्च होती है। यह Na+-K+विनिमय पम्प द्धारा हो सकता है।
4 यह कोशिका आसंजन सहायता करती है।
5 जीवाणु प्लाज्मा झिल्ली पर श्वसन एन्जाइम पाये जाते है। जो उनको श्वसन क्रिया सम्पन्न करते है।
6 एककोशिकीय जीवों या भकक्षी कोशिकाओं में प्लाज्मा झिल्ली पदार्थो का अन्त ग्रहण करती है। जिसे एण्डोसाइटोसिस कहते है।
7 प्लाज्मा झिल्ली एककोशिकीय जीवों में अनावश्यकता एवं उत्सर्जी पदार्थो उत्सर्जन प्लाज्मा झिल्ली के द्धारा किया जाता है। इस क्रिया को एक्जोसाइटोसिस कहते है
कोशिका भित्ति व कोशिका झिल्ली में अन्तर
कोशिका
भित्ति | कोशिका झिल्ली |
यह एक
निर्जीव परत होती है। | जबकि यह
एक सजीव परत है। |
यह
सेल्युलोस एवं इसके अवयवों द्धारा बनी होती है। | यह
प्रोटीन एवं फास्फोलिपिड द्धारा बनी रहती है |
यह पादप
कोशिका का बाहरी आवरण
बनती है। | यह जंतु
कोशिका का बाहरी आवरण बनाती है। |
यह
पारगम्य परत है। | यह
अर्द्धपारगम्य होती है। |
यह केवल पादप कोशिका का बाहरी आवरण बनाती
है। | यह बाहरी आवरण के अलावा कोशिकांगो का भी
बहरी आवरण बनाती है। |
यह एकल परत
होती है | यह दोहरी
इकाई झिल्ली से निर्मित होती है। |
इसमें यान्त्रिक सामर्थता पाई जाती
है। | जैविक
सामर्थता पाई जाती है। |
कोशिकाद्रव्य : यह केन्द्रक तथा कोशिका कला के बीच स्थित होता है। यह प्रोटीन ,वसा ,पिगमेंट्स ,खनिज लवण व विटामिन का बना होता है। साइटोप्लाज्मा शब्द स्ट्रॉसबर्गर (1882) ने दिया। इसमें दो भाग शामिल होते है।
(1) साइटोसोल /हायलोप्लाज्म /ग्राउण्डप्लाज्म : यह कोशिकागों को छोड़कर कोशिका द्रव्य का तरल भाग है। कोशिका द्रवीय मैट्रिक्स या साइटोसॉल ,सॉल या जैल अवस्था में पाया जाता है। जिसे प्लाज्मासॉल या प्लाज्मा जैल कहते है। प्लाज्मा जैल परिधीय भाग में पाया जाता है।जिसे एक्टोप्लास्ट कहते है।
2 अंगको के मध्य पदार्थो स्थान्तरण कोशिका द्रव्य द्धारा होता। है
3 कोशिकागों द्धारा बने उत्पाद कोशिका द्रव्य में स्थानान्तरित होते है
4 कोशिकाद्रव्य पदार्थो के संचरण हेतु हमेशा गतिमान रहता है।
कोशिका द्रव्यी प्रवाह गति :इसे साइक्लोसिस भी कहते है। जो की यूकैरियोटिक कोशिका में पायी जाती है। यह दो प्रकार की होती है।
(B) संचरण : इसमें मैट्रिक्स कोशिका की विभिन्न रिक्तिकाओं के चारों तरफ विभिन्न दिशाओं में गतिमान रहता है। Eg ट्रेडिस्कैशिया के पुंकेसरीय रोम।
(2) ट्रोफोप्लाज्म : इसमें कोशिकांग तथा कोशिका इन्क्लूजन शामिल है।
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