लवक : कोशिकाओं में पाई जाने वाली नलिका रूपी संरचनाये लवक कहलाती है। इनकी खोज सर्वप्रथम हेकल (1865)में की। लवक दोहरी झिल्लीबद्ध कोशिकांग होते है। इसमें विभिन्न प्रकार के कार्य सम्पन्न होते है। ये सभी पादप कोशिकाओं व युग्लीनॉयड्स में पाये जाते है।
लवक के प्रकार : रंग के आधार पर लवक तीन प्रकार के होते है।
(A) अवर्णी लवक (Leucoplasts)
(B) वर्णी लवक (Chromoplasts)
(C) हरित लवक (Chloroplasts)
(A) अवर्णी लवक (Leucoplasts) : ये अनियमित आकार के वर्णक हीन या रंगहीन लवक होते है। जिनमे विभिन्न पदार्थो का संचय होता है। ये भूमिगत भागों (जड़ व भूमिगत तनों )में पाये जाते है। ये खाध पदार्थो के संचय के आधार पर तीन प्रकार के होते है।
(a) एमाइलोप्लास्ट :ये मण्ड या स्टॉर्च रूप कार्बोहाइडेट्स का संचय करते है
(b) इलियोप्लास्ट : तेल या वसाओं का संचय करते है।
(c) प्रोटीनोप्लास्ट : प्रोटीन का संचय करते है।
(B) वर्णी लवक (Chromoplasts) : ये रंगीन लवक होते है। (हरे रंग को छोड़कर)ये वर्णी लवक वर्णकों की उपस्थिति के कारण रंगीन होते है। इनमे वसा में घुलनशील केरोटिनॉइड्स होते है। जैसे लाल नांरगी रंग -केरोटिन वर्णक के कारण ,तथा पीला रंग जेन्थोफिल वर्णक के कारण ,मिर्ची व टमाटर का लाल वर्णक (लाइकोपीन) ,पुष्पों फलों व बीजों का आकर्षक रंग।
(C) हरित लवक (Chloroplasts): ऐसे लवक जिनमे हरे रंग का वर्णक पर्णहरित पाया जाता है। हरित लवक कहलाते है। ये दोहरी कला युक्त ऊर्जा रूपांतरणकारी ,अर्धस्वायत ,पादप कोशिका का सबसे बड़ा कोशिकांग है।इसे आटोप्लास्ट या प्रकाशसंश्लेषी उपकरण या कोशिका की रसोई कहते है।
माप व आकृति : इसकी माप 5 -10µm⨯2-4µmहोती है।
पादप | क्लोरोप्लास्ट की आकृति |
क्लेमाइडोमोनस | प्यालेनुमा |
युलोथिक्स | मेखलाकार |
स्पाइरोगाइरा | रिबन सद्र्श्य या सर्पिल |
जिगिनमा | ताराकार |
ऊडोगोनियम | जालवत |
उच्च पादप | डिस्कनुमा /अण्डाकार
/लेंस /गोलाकार |
क्लोरोप्लॉस्ट की संरचना : यह एक दोहरी इकाई झिल्लीयुक्त गोलाकार या अण्डाकार संरचना होती है। प्रत्येक क्लोरोप्लॉस्ट में तीन भाग होते है।
Ⅰ आवरण Ⅱ स्ट्रोमा /मैट्रिक्स(पीठिका) Ⅲ पटलिकीय तंत्र
Ⅰ आवरण: इसमें लिपोप्रोटीन की दो इकाई कलाएँ होती है।प्रत्येक कला का व्यास 90-100A० होता है। दो कलाओं के बीच के स्थान को परिलवकीय अवकाश कहते है। बाहरी कला मुक्त रूप से पारगम्य तथा आन्तरिक कला चयनात्मक पारगम्य होती है।
Ⅱ स्ट्रोमा /मैट्रिक्स (पीठिका): दो झिल्लिओ के बीच के भाग को मैट्रिक्स कहते है। इसमें प्रोटीन ,स्टार्च,राइबोसोम70S प्रकार के कण ,जल तथा DNA पाया जाता है। हरितलवक के DNA को cpDNA या प्लॉस्टीडोम कहते है। इसमें दो प्रकार की लेमेली पाई जाती है
(1) स्ट्रोमालेमेली : यह पतली इकहरी नलिका होती है। (2) ग्रेनालेमेली : स्ट्रोमालेमेली से अनेक पतली चपटी होती है
Ⅲ पटलिकीय तंत्र : यह दोहरी कला युक्त नलिकीय आशयों का बना होता है जिसे थाइलेकॉइड्स कहते है यह शब्द (Menke) ने 1962 में दिया। ये थाइलेकॉइड्स एक के ऊपर एक सिक्के के चटटे की तरह व्यवस्थित होकर ग्रेनम बनाती है। प्रत्येक क्लोरोप्लॉस्ट में 40-60 ग्रेना होते है। ग्रेनाच C4 पादपों के पुलाच्छद के क्लोरोप्लॉस्ट तथा शैवालों में अनुपस्थिति होते है। इन्हे एग्रेनल क्लोरोप्लॉस्ट कहते है। थाइलेकॉइड् की आन्तरिक कला पर कणीय संरचना होती है। जिसे क्वान्टोसोम कहते है। प्रत्येक क्वान्टोसोम पर 230 -256 पर्णहरित या क्लोरोफिल अणु होते है।
रासायनिक संघटक : प्रोटीन 40-50%,वसा 25%,DNA 0.03 %,RNA 4%क्लोरोफिल 6-10%, 1-2%केरोटोइज ,जेन्थोफिल ,लवण तथा कॉपर ,जिंक आदि।
कार्य : 1हरितलवक में पर्णहरित की उपस्थति ले कारण प्रकाश सश्लेषण की क्रिया होती है जिसके द्धारा शर्कराओं का निर्माण होता है। जो मुख्य भोज्य पदार्थ है। इसलिए पादपों को उत्पादक कहते है।
2 हरितलवक में प्रकाश श्वसन के स्थल होते है। जिससे प्रकाशी ऊर्जा का रूपान्तरण रासायनिक ऊर्जा में होता है। प्रकाशिक अभिक्रिया के दौरान पर्णहरित सूर्य के प्रकाश से मिलने वाली ऊर्जा को क्वान्टासोम इकाई के रूप में अवशोषित करता है।
3 हरितलवक वातावरण से को CO2 ग्रहण क्र प्रकाश सश्लेषण में प्रयुक्त करता है जिसे वातावरण में CO2 की सांद्रता नियमित बनी रहती है।
NOTE :⇒ प्रकाश सश्लेषण क्रिया दिन व रात दोनों समय होती है। (दिन में प्रकाशिक व रात में अप्रकाशिक )
⇒ पतियों में पादप संचित खाध पदार्थ को स्टार्च या मण्ड के रूप में रखते है जबकि जन्तुओ में संचित खाध पदार्थ ग्लाइकोजन के रूप माँसपेशियों व यकृत में पाया जाता है।
⇒ प्रकाशिक अभिक्रिया (हिल अभिक्रिया )ग्रेना भाग में सम्पन्न होती है। जबकि अप्रकाशिक अभिक्रिया (ब्लैक मेन अभिक्रिया )हरितलवक के मैट्रिक्स में सम्पन्न होती है।
⇒प्रकाश सश्लेषण की क्रिया में CO2 गैस काम में ली जाती है। जबकि O2 गैस प्राप्त होती है।
⇒ प्राप्त होने वाली O2 जल के अणु से फोटोफॉस्फोराइलेशन प्रक्रिया के दौरान प्राप्त होती है।
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