Cell biology 6 समसूत्री विभाजन

कोशिका विभाजन : प्रकृति में पाई जाने वाली प्रत्येक सजीव कोशिका की उत्पति कोशिका विभाजन द्वारा अपनी पूर्वर्ती कोशिका से होती है। अर्थात मातृ कोशिका का पुत्री कोशिकाओं में परिवर्तित होना कोशिका विभाजन कहलाता है।    कोशिका विभाजन  चक्रीय प्रक्रिया है। जिसे कोशिका चक्र कहते है। कोशिका चक्र एक जटिल प्रतिक्रिया है।जो निम्न चार चरण में पूर्ण होती है। 

NOTE -दो कोशिका चक्रों के बीच का समय (generation time)कहलाता है। जैसे एक मानव कोशिका 24 घण्टे में व एक यीस्ट कोशिका 90 मिनट में विभाजित होती है।                       

① G1 प्रावस्था  ②S प्रावस्था  ③ G2 प्रावस्था  ④M प्रावस्था              

① G1 प्रावस्था - जिस कोशिका में कोशिका विभाजन होना होता है। उस कोशिका का कोशिकाद्रव्य सक्रिय होकर नये पदार्थ के संश्लेषण हेतु उनके अवयवों के निर्माण करना शुरू कर देते है। जैसे प्रोटीन,ऐमिनो अम्ल,न्यूक्लिक अम्ल,पेन्टोज शर्करा,फॉस्फेट समूह,नाइट्रोजन क्षारक आदि। यह प्रावस्था में नए पदार्थ के संश्लेषण की तैयारी होती है। इस लिए सबसे लम्बी प्रावस्था होती है।                                              

②Sप्रावस्था- इस प्रावस्था में कोशिका विभाजन हेतु DNA का संश्लेषण होता है।                 

③ G2 प्रावस्था- इस प्रावस्था में प्रोटीन एवं RNA का संश्लेषण होता है। तारक केन्द्रो की पुनरावृति इसी प्रावस्था में होती है।         

④M प्रावस्था- इस प्रावस्था में कोशिका विभाजन की लगभग सम्पूर्ण तैयारी हो जाती है।इसलिए इसे परिपक़्व प्रावस्था कहते है।                                             

कोशिका चक्र की प्रक्रिया द्वारा कोशिका विभाजन हेतु तैयार हो जाती है। कोशिका विभाजन दो प्रकार का होता है।                                                        
 ❶समसूत्री विभाजन            
 ❷अर्द्ध सूत्री विभाजन                                                      
❶समसूत्री विभाजन (Mitiosis): ऐसा कोशिका विभाजन जिसमे एक मातृ कोशिका विभाजित होकर दो पुत्री कोशिकाओं का निर्माण करती है। तथा बनने वाली दो पुत्री कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या मातृ कोशिका के समान रहती है।समसूत्री कोशिका विभाजन कहलाती है।                                 
समसूत्री कोशिका विभाजन की क्रिया विधि:- समसूत्री कोशिका विभाजन एक सतत प्रक्रिया होती है। किन्तु अध्ययन की दृष्टि से इसे निम्न पांच प्रावस्था में विभाजित किया गया है।                   
⑴ इन्टरफ़ेज ⑵प्रोफेज ⑶मेटाफेज ⑷ऐनाफेज   ⑸टीलोफेज                                                                                                                                   
⑴ इन्टरफ़ेज:- यह कोशिका विभाजन की प्रारम्भिक अवस्था होती है। जिसमे कोशिका अपने मूल कार्य को छोड़कर कोशिका विभाजन की तैयारी शुरू कर देती है। इसलिए इसे अन्तरा अवस्था या विश्राम अवस्था कहते है।                          

⑵प्रोफेज:- यह कोशिका विभाजन की प्रथम अवस्था होती है। जिसमे निम्नलिखत परिवर्तन होते है। 
1 केन्द्रक झिल्ली विलुप्त होने लगती है।                                       
 2 तारकाय दो भागों में विभाजित होने लगता है।    
3 केन्द्रिका विलुप्त होने लगती है।
4 गुणसूत्र जल निकालकर (निर्जलीकरण) की क्रिया द्वारा कुण्डलित होने लगते है।                                                                                                                                  
⑶मेटाफेज:- यह कोशिका विभाजन की दूसरी सक्रियअवस्था है। जिसमे निम्नलिखित परिवर्तन होते है। 
1 केन्द्रक झिल्ली के पूर्णतः विलुप्त होने से कोशिका द्रव्य,केन्द्रकद्रव्य मिलकर सम मिश्रण बनाते है।                           
2 तारकाय विभाजित हो कर दो विपरीत धुव्रों का निर्माण करती है।        
3 गुणसूत्र कोशिका में मध्य एक कतार में व्यवस्थित हो जाते है।जिसे इक्वीटोरियल प्लेट कहते है।      
 4 विपरीत धुव्रों का  परस्पर आकर्षण होने से स्पीडल का निर्माण होता है।   
5 गुणसूत्र अपनी जैसी प्रतिकृति का निर्माण कर द्विसूत्री हो जाते है।                              

⑷ऐनाफेज:- यह तीसरी सक्रिय अवस्था होती है। जिसमे निम्नलिखित परिवर्तन होते है।   
1 धुव्रों के परस्पर आकर्षण से गुणसूत्र भुजाये गुणसूत्र बिंदुओं से टूट कर पृथक हो जाती है।    
 2 इस्टर विकिरणों के छोटे होने से गुणसूत्रीय भुजाये विपरीत धुव्रों की और खिचती है। तथा मध्य में इस्टर विकिरण समाप्त हो जाती है।   
3 गुणसूत्र के प्रतिलिपि धुव्रों के पास पहुँच जाती है।                                      

⑸टीलोफेज:- यह कोशिका विभाजन की अन्तिम सक्रिय प्रावस्था होती है।जिसमे प्रोफेज में होने वाले परिवर्तन विपरीत दिशा में होते है।                      
1 केन्द्रक झिल्ली का पुनः निर्माण होने लगता है।   
 2 केन्द्रिका का निर्माण होने लगता है।     
3 गुणसूत्र जल सोखकर कुण्डलित धागेनुमा होने लगता है।      
4 कोशिका द्रव्य का विभाजन प्रारम्भ हो जाता है।                                                                         
कोशिका द्रव्य विभाजन:- (वाइटमेंन) केन्द्रक विभाजन के पश्चात कोशिका द्रव्य विभाजन प्रारम्भ होता है। जो निम्न दो प्रकार का होता है।                                         
⓵कोशिका झिल्ली सक्रीर्णन द्वारा :- इस प्रकार कोशिका द्रव्य विभाजन जन्तु कोशिका में होता है। इसमें केन्द्रक द्रव्य के पश्चात कोशिका की मध्य पार्श्व झिल्लियाँ अन्दर की ओर धसने लगती है।जिससे मातृ कोशिका दो पुत्री कोशिका में विभाजित हो जाती है।                                                                                                 
⓶कोशिका पट विधि द्वारा :- इस प्रकार का कोशिका द्रव्य विभाजन पादप कोशिकाओं में होता है।इसमें कोशिका के मध्य में से मध्य पटलिका का निर्माण शुरू होता है। जो दोनों ओर सतत रूप से वृद्धि कर कोशिका भित्ति तक पहुँच कर दो पुत्री कोशिकाओं का निर्माण करते है।                                                                             
कोशिका विभाजन का महत्व :-
1 समसूत्री कोशिका विभाजन द्वारा नवीन कोशिका की उत्पति से वृद्धि एवं विकास होता है।                                                                     
2 समसूत्री कोशिका विभाजन से निर्मित नवजात कोशिका घाव या क्षतिपूर्ति करती है।
3इसके द्वारा बनने वाली संतति कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या मातृ कोशिका का समान होती है।                                                                                                   
4 सरल एक कोशिकीय जीवों में यह जनन की विधि होती है।                                                                                  

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