परिभाषा :- मानव शरीर में समान कार्य वाले अंगो के समूह को तंत्र कहते है। मानव में 11 प्रकार के तंत्र पाये जाते है।
①कंकाल तंत्र ②मासपेशियाँ तंत्र ③पाचन तंत्र ④श्वसन तंत्र ⑤तंत्रिका तंत्र ⑥परिसंचरण तंत्र ⑦उत्सर्जन तंत्र ⑧प्रजनन तंत्र ⑨अन्तः स्रावी तंत्र ⑩सवेदी तंत्र ⑪अध्यावरणीय तंत्र
मानव पाचन तंत्र Human digestive system :- पाचन तंत्र अंगो व ग्रंथियों से बना वह तंत्र है जो भोजन की प्राप्ति ,पाचन ,अवशोषण ,स्वागीकरण तथा अपचित पदार्थो के बहिः क्षेपण से संम्बन्धित है। मनुष्य का पाचन तंत्र एक जटिल संरचना है। जिसको अध्ययन की द्ष्टि से निम्न तीन भागो में विभाजित कर सकते है।
(A)आहार नाल की संरचना Structure of the alimentary canal
(B)पाचन ग्रंथि Digestive gland
(C)पाचक एन्जाइमो का पाचन Digestive gland
(A)आहारनाल की संरचना Structure of the alimentary canal :- मनुष्य के पाचन तंत्र में विभिन्न अंग भोजन का पाचन करने हेतु एक श्रृंखला में जुडकर एक नलिकाकार संरचना बनाते है। इसे आहारनाल कहते है। इसकी लम्बाई 6 -9 m होती है। इसमें विभिन्न अंग होते है।
(a) मुख Mouth :- मनुष्य के सिरे के अग्र सतह पर एक अनुप्रस्थ दरार के रुप में एक मुख छिद्र पाया जाता है। जो ऊपरी तथा नीचले होंठो द्वारा घिरा रहता है। मुख पीछे की ओर एक गुहा में खुलता है। जिसे मुख गुहा कहते है मुख गुहा की ऊपरी सतह कठोर तथा निचली सतह कोमल तालु द्वारा बनी होती है। जिसकी सतह पर पेशियाँ श्रृंखला पाई जाती है। जिसे जीव्हा कहते है। जिस पर स्वाद कलिकाऐ पाई जाती है। जो स्वाद का ज्ञान करती है। मुख के ऊपर व नीचे के भाग में दाँत पाये जाते है। जो कार्य के आधार पर 4 प्रकार के होते है।
(1) कृतनक Inciser :- काटना (8) ये सबसे आगे के दाँत है। जो लम्बे मुडे हुए नुकीले सिरे युक्त होते है। ये भोजन को कुतरने व काटने का कार्य करते है।
(2) रदनक Canine :- ये एकल नुकीले सिरे वाले दाँत है। ये चीरने,फाड़ने तथा सुरक्षा करने में सहायक है। इनकी संख्या 4 होती है।
(3) अर्गचवर्णक Pre -moler :- ये दो उभार वाले दाँत है। जो भोजन को पीसने,तोडने तथा चबाने में सहायक है। इनकी संख्या 8 होती है।
(4) चवर्णक Moler :- ये चार उभार वाले दाँत भोजन को चबाने में सहायक होते है। इनकी संख्या 12 होती है।
(B) ग्रसनी Pharynx :-मुख गुहिका का पश्च भाग एक चिकनी लसलसी गुहा में खुलता है। जिसे ग्रसनी कहते है। इसमें लार ग्रंथियाँ आकर खुलती है। इसका मुख्य कार्य भोजन को निगलने का है। ग्रसनी को मुख्यतः तीन भागो में विभक्त किया गया है।
(a) नासा ग्रसनी Nasopharynx (नेजोफेरिग्स )
(b) मुखीय ग्रसनी Oropharynx (ओरोफेरिग्स )
(c) कंठीय ग्रसनी Laryngopharynx ( लेरिगोफेरिग्स)
ओरोफेरिग्स एक महत्वपूर्ण भाग है। जहाँ भोजन तथा वायु एक दूसरे को क्रॉस करते है।
(C) ग्रसिका Oesophagus :-यह एक लचीली नलिका रूपी संरचना होती है। जो ग्रसनी से लेकर आमाशय से जुडी रहती है। इसकी आंतरिक सतह पर श्लेष्मा ग्रन्थि पाई जाती है। जो भोजन को फिसलने में सहायक है। इसकी लम्बाई 25 cm होती है।
कार्य -भोजन का संवहन।
( D) आमाशय Stomach :-यह एक लम्बी,एकल पालित J आकार की संचरना है। जो डायाफ्रम के नीचे उदर गुहा में स्थित होता है। इसके तीन भाग होते है। ऊपरी भाग कार्डियक/फंडिक मध्य भाग कार्पस तथा नीचे का भाग फण्डस कहलाता है। आमाशय के अग्रभाग में एक अवरोधनी (वॉल्व) पाया जाता है। जो भोजन को ग्रसिका से आमाशय में तो आने देता है। किन्तु आमाशय से ग्रसिका में वापस नही जाने देता है। इसी प्रकार इसके पश्च भाग में भी पश्च अवरोधनी पाई जाती है। जो आमाशय से भोजन को ग्रहणी में जाने देती है। किन्तु ग्रहणी से पुनः आमाशय में नही आने देती है। अर्थात दोनों अवरोधनीयाँ कपाट की भाति कार्य करती है।
(E) गृहणी Doudenuma :-- आमाशय का पश्च भाग एक "U"आकार की नलिका में खुलता है। जिसे गृहणी कहते है। जिसमे अग्नाशय ग्रन्थि से अग्नाशय वाहिनी एवं यकृत से पित्त वाहिनि आकार खुलती है। जिनसे निकलने वाले पाचक रस भोजन का पाचन करते है।
(F) छोटी आंत्र Small Intestine :--गृहणी का पश्च सिरा एक लम्बी पतली कुण्डलित नलिका बनाता। है यह आहार नाल का सबसे लम्बा भाग होता है। जो उदरगुहा में स्थित होता है। इसकी लम्बाई 6.25 मीटर होती है। इसकी आन्तरिक सतहो से पाचक रसों का स्त्रावण होता है। जिसे आंत्र रस कहते है। जो भोजन का शेष पाचन करते है। इसे तीन भागों में बाटा गया है।
डयूओडिनम (अग्र भाग) |
जेजुनम(मध्यभाग) |
इलियम (पश्च भाग ) |
25cm.
लम्बा
जेजुनम से मिलने से पूर्व U -आकार का लूप बनती है इस लूप में
पैन्क्रियाज स्थित होती है। |
लगभग
2-2.5
मित्र
लम्बा तथा 4 सेमी
चौड़ी दीवार,अत्यधिक
संवहनी विलाई मोटे तथा जीभ के आकार के होते है। |
3.5
मीटर
लम्बा तथा 3.5 सेमी चौड़ी दीवार,संवहनी
विलाई पतले तथा अँगुली आकार के होते है। |
(G) बड़ी आंत्र large Intestine :-- छोटी आंत्र का पश्च सिरा लम्बी कुण्डलित बड़ी नलिका में खुलता है। जिसे जिसे बड़ी आंत्र कहते है। बड़ी आंत्र व छोटी आंत्र के सन्धि स्थल पर एक अँगुली रूपी नलिका पाई जाती है। जिसका अग्र भाग बन्द होता है। जिसे परिशोषिका या अंधनाल कहते है। जो मनुष्यों में अवशोषी अंग के रूप में पाई जाती है। इसकी लम्बाई 1.5 -1.75 मीटर होती है। इसका मुख्य कार्य जल व खनिज लवणों का अवशोषण करना है।
(H) मलाशय Rectum :-- बड़ी आंत्र का पश्च भाग एक थैली नुमा संरचना बनाता है। जिसमे अपचित भोजन का अस्थाई संग्रह होता है। इसमें इसके अतिरिक्त जल का पुनः अवशोषण भी किया जाताहै।
(I) मलद्वार Anus :-- यह आहार नाल का अंतिम भाग होता है। जिसकी लम्बाई 3cm होती है। इसके द्वारा समय -समय पर मल का उत्सर्जन किया जाता है।
0 टिप्पणियाँ