परिभाषा :- ऐसे तत्व जो इलेक्टॉन त्यागकर धनायन बनाते है। उन्हें धातु कहते है। आधुनिक आवर्त सारणी में धातु तत्व बायी व मध्य में स्थित है।
धातु के भौतिक गुण धर्म :-
1 भार
2 रंग
3 चालकता
4 चुंबकीय
5 गलनीयता
1 भार -प्रत्येक धातु का भार होता है। जो एक -दूसरे से भिन्न है।
2 रंग -प्रत्येक धातु का रंग अलग -अलग होता है। तथा इन्हे रंगो के आधार पर धातु की पहचान होती है।
3 चुम्बकीयता - यह धातु का वह गुण होता है। जिससे धातु चुम्बक बन जाती है। परन्तु प्रत्येक धातु में यह गुण नहीं पाया जाता है।
4 चालकता - सभी धातु विधुत की चालक होती है।
चालकों का सही क्रम - चाँदी (Ag) > तांबा (Cu) > सोना (Au) > एल्युमिनियम (Al)
5 गलनीयता - धातु का वह गुण जिससे एक निश्चित तापक्रम पर धातु गलकर द्रव बन जाती है। गलनीयता कहलाती है। तथा जिस तापक्रम पर धातु पिघलकर द्रव बन जाती है। उसे गलनांक कहते है।
धातुओं के यान्त्रिक गुण - धातुओं के यांत्रिक गुण निम्न प्रकार है।
❶ लचीलापन - धातु का वह जिसके कारण धातुओं को खींचने या भार डालने पर लचक या खिंचाव आ जाता है। इस गुण को लचीलापन कहते है। उदारहण - सर्वाधिक लचीलापन रबर में तथा धातुओं में स्टील में होता है।
❷ कठोरता - धातुओं का वह गुण जिसके कारण धातु न घिसे, न टूटे इस गुण को कठोरता कहते है।
❸ तन्यता - धातु का वह गुण जिसमे इन्हें खींचने पर ये टूटते नहीं है। इस गुण को तन्यता कहते है।
⇨ इस गुण के आधार पर धातुओं को खींचकर तार बनाये जाते है।
⇨ सर्वाधिक तन्य धातु सोना है। और 1 gm सोने से 2 Km लम्बा तार खींचकर बनाया जा सकता है।
❹ धातुवर्ध्यता / आघातवर्ध्यता - धातु का वह गुण जिसके आधार पर इन्हें पीटकर पतली चादर बनाई जाती है। इस गुण को धातुवर्ध्यता कहते है।
उदारहण - सर्वाधिक आघातवर्ध्यता धातु चाँदी होती है।
❺ ध्वानिक - जो धातुएँ कठोर सतह से टकराने पर आवाज उत्पन्न करती है। उन्हें ध्वानिक (सोरोरस) कहते है।
उदारहण :- स्कूल की घंटी
अधातु (Non - metals) - जो तत्व धातु की तरह व्यवहार नहीं करते है। तथा इलेक्ट्रॉन ग्रहण करते है। उन्हें अधातु कहते है।
आधुनिक आवर्त सारणी में अधातु को दायी ओर (P ब्लॉक) में रखा गया है।
कुचालक / अधातु - वे तत्व या पदार्थ जिनके अन्दर विधुत धारा बिल्कुल भी प्रवाहित नहीं होती है। उन्हें कुचालक /अधातु कहते है। क्योंकि इन पदार्थो के अन्दर मुक्त इलेक्ट्रॉन की संख्या नगण्य पाई जाती है। और ऊर्जा अंतराल का मान बहुत अधिक होता है।
नोट - ⒜कमरे के तप पर द्रव धातु पारा (Hg) होती है।
⒝ सोडियम (Na) व पौटेशियम (K) धातु को चाकू से आसानी से काटा जा सकता है।
⒞ सिल्वर (Ag) व कॉपर (Cu) धातु ऊष्मा की सबसे अच्छी चालक है।
⒟ सीसा (Pb) व पारा (Hg) धातु ऊष्मा की कुचालक होती है।
धातु + ऑक्सीजन → धातु ऑक्साइड
जब कॉपर को वायु की उपस्थिति में गर्म किया जाता है। तो यह ऑक्सीजन के साथ मिलकर काळा रंग का कॉपर (Ⅱ) ऑक्साइड बनाता है।
2Cu + O2 → 2CuO
इसी प्रकार ऐलुमिनियम ऐलुमिनियम ऑक्साइड प्रदान करता है।
4Al + 3O2 → 2Al2O3
उभयधर्मी ऑक्साइड - ऐसी धातु ऑक्साइड जो अम्ल तथा क्षार दोनों से अभिक्रिया कर लवण तथा जल प्रदान करते है। उभयधर्मी ऑक्साइड कहलाते है।
Al2O3 + 6HCl → 2AlCl3 + 3H2O
Al2O3 + 2NaOH → 2NaAlO2 + H2O
जैसे - Al,Zn,एवं Pb धातु ऑक्साइड जल में अघुलनशील होती है। इनमें से कुछ जल में घुलकर क्षार उत्पन्न करते है।
उदारहण - पोटैशियम ऑक्साइड व सोडियम ऑक्साइड।
K2O(s) + H2O (l) → 2KOH (aq)
Na2O (s) + H2O(l) → 2NaOH (aq)
सोडियम धातु को मिट्टी के तेल में डुबाकर रखा जाता है। क्योंकि यह खुले में आग पकड़ लेती है। तथा पोटैशियम धातु को मोम में लिपेटकर रखा जाता है।
धातुओं की जल के साथ अभिक्रिया - जल के साथ अभिक्रिया करके धातु,धातु ऑक्साइड तथा हाइड्रोजन गैस उत्पन्न करती है। कुछ धातु ऑक्साइड जल में विलयशील होते है। तथा जल में अधिक घुलकर धातु हाइड्रोक्साइड प्रदान करते है।
धातु + जल → धातु ऑक्साइड + हाइड्रोजन गैस
धातु ऑक्साइड + जल → धातु हाइड्रोक्साइड
नोट - ➀सोडियम एवं पोटैशियम ये दो धातुऐ ठंडे जल के साथ तेजी से अभिक्रिया करती है। इनकी क्रिया इतनी तेज व ऊष्माक्षेपी होती है। की उत्पन्न हाइड्रोजन गैस तुरंत जलने लगती है।
2K(s) + 2H2O(l) → 2KOH(aq) + H2(g) + ऊष्मीय ऊर्जा
2Na(s) + 2H2O(l) → 2NaOH(aq) +H2(g) + ऊष्मीय ऊर्जा
② कैल्शियम की अभिक्रिया जल के साथ थोड़ी धीमी होती है।
Ca(s) + 2H2O(l) → Ca(OH) 2(aq) + H2(g)
③ मैग्नीशियम धातु ठंडे जल के साथ अभिक्रिया नहीं करती है।
④ Al,Zn व Fe ये धातुऐ न तो गर्म जल और न ही ठंडे जल के साथ अभिक्रिया करती है।ये भाप के साथ अभिक्रिया करके धातु ऑक्साइड व हाइड्रोजन गैस उत्पन्न करती है।
2Al (s) + 3H2O (g) → Al2O3(s) + 3H2(g)
3Fe (s) + 4H2O(g) → Fe3O4(s) + 4H2(g)
⑤सीसा(Pb),कॉपर(Cu), सोना(Au) और चाँदी(Ag) जैसी धातुऐ जल के साथ मिलकर बिल्कुल भी अभिक्रिया नहीं करती है।
धातुओं की अम्लों के साथ अभिक्रिया - धातुऐ जब अम्लों के साथ अभिक्रिया करती है. तो लवण व हाइड्रोजन गैस प्रदान करती है।
धातु + तनु अम्ल → लवण + हाइड्रोजन गैस
Fe + H2SO4 →
FeSO4 + H2
Zn + H2SO4 →
ZnSO4 + H2
एक्वारेजिया - इसमें 1 भाग सांद्र [HNO3]तथा 3 भाग [HCl] के ताजा मिश्रण होता है। इसके कारण सोना ,प्लेटिनम आदि धातुये पिघल जाती है। इसे रॉयल वाटर भी कहते है।
धातु की लवण विलयन के साथ अभिक्रिया
सक्रियता श्रेणी - सक्रियता श्रेणी वह सूची है। जिसमे धातुओं की क्रियाशीलता को अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया जाता है। इसे सक्रियता श्रेणी कहते है।
सक्रियता श्रेणी : धातुओं की सापेक्ष अभिक्रियाशीलताएँ
K - पोटेशियम
Na - सोडियम Ca - केल्शियम Mg- मैग्नीशियम Al-एलुमिनियम Zn -- जिंक Fe - आयरन Pb - लेड H - हाइड्रोजन Cu - कॉपर Hg - मर्करी Ag - सिल्वर Au - गोल्ड |
सबसे
अधिक अभिक्रियाशील
घटतीअभिक्रियाशीलता
सबसे
कम अभिक्रियाशील |
⇨ अधिक क्रियाशील धातु (सक्रियता श्रेणी के अनुसार ) ही कम क्रियाशील धातु को प्रतिस्थापित कर सकती है।
⇨ आयरन, तांबा से अधिक क्रियाशील है। अतः आयरन रासायनिक अभिक्रिया में तांबा को प्रतिस्थापित कर सकता है।
आयनिक यौगिकों के गुणधर्म - धातु से अधातु में इलेक्ट्रोनों के स्थानांतरण से बने यौगिक को विधुत संयोजक यौगिक या आयनिक यौगिक कहते है।
(ⅰ) घुलनशीलता - विधुत संयोजक यौगिक सामान्यतः जल में घुलनशील तथा केरोसिन पेट्रोल जैसे विलायक जल में अघुलनशील होते है।
(ⅱ) क्वथनांक एवं गलनांक - आयनिक यौगिकों का क्वथनांक एवं गलनांक बहुत अधिक होता है।क्योंकि इनके मजबूत अंतर- आयनिक आकर्षण को तोड़ने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
(ⅲ) भौतिक प्रकृति - आयनिक यौगिक ठोस व थोड़े कठोर होते है। क्योंकि इनके मध्य ऋणात्मक व धनात्मक आयनों के बीच प्रबल आकर्षण होता है। ये यौगिक दबाब देने पर छोटे -छोटे टुकड़ों में टूट जाते है। क्योंकि ये भगुंर होते है।
(ⅳ) विधुत चालकता - ठोस अवस्था में आयनिक यौगिक विधुत का चालन नहीं करते है। क्योंकि इनकी ढृढ़ संरचना के कारण आयनों की गति संभव नहीं है। तथा आयनिक यौगिक द्रव अवस्था में विधुत का संवहन (चालन) करते है। क्योंकि द्रव अवस्था में विपरीत आवेश वाले आयनो के बीच स्थित वैधुत आकर्षण बल,ऊष्मा के कारण कमजोर हो जाते है। इस कारण आयन स्वतंत्र रूप से गति करते है। एवं विधुत का चालन करते है।
खनिज - पृथ्वी की भूपर्पटी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले तत्व या यौगिक को खनिज कहते है।
अयस्क - वे प्राकृतिक खनिज जिनमे धातु के साथ -साथ अवशिष्ट पदार्थ पाये जाते है। तथा जिनसे कोई विशेष धातु काफी मात्रा में प्राप्त होती है। उन्हें अयस्क कहते है।
गैंग (आधात्री) - अयस्क में पाये जाने वाले अवशिष्ट पदार्थ व अशुद्धियों को गैंग कहते है।अयस्कों से गैंग को हटाने के लिए जिन प्रक्रियाओं का उपयोग होता है। वे अयस्क एवं गैंग के भौतिक या रासायनिक गुणधर्मो पर आधारित होते है।
धातुकर्म - अयस्कों से धातुओं को अलग -अलग करने की विधि को धातुकर्म कहते है।
धातुओं का निष्कर्षण :-
सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुओं का निष्कर्षण - सक्रियता में नीचे आने वाली धातुएँ काफी अनभिक्रिय होती है। इन धातुओं के ऑक्साइड को केवल गर्म करने से ही धातु प्राप्त किया जा सकता है। जैसे सिनाबार(HgS), मर्करी (पारद) का एक अयस्क है। वायु में गर्म करने पर यह सबसे पहले मरक्यूरिक ऑक्साइड (HgS) में परिवर्तित होता है। और अधिक गर्म करने पर मरक्यूरिक ऑक्साइड मर्करी में अपचयित हो जाता है।
2HgS(s) + 3O2(g) →2HgO(s) + 2SO2(g)
2HgO(s) → 2Hg(l) + O2(g)
इसी प्रकार प्राकृतिक रूप से [Cu2S]के रूप में उपलब्ध तांबे को केवल वायु में गर्म करके इसका अयस्क से अलग किया जा सकता है।
2Cu2S
+ 3O2(g) → 2Cu2O(s) + 2SO2(g)
2Cu2O
+ Cu2S → 6Cu(s) + SO2(g)
①भर्जन - इसमें अयस्कों को उच्च तप पर एवं ऑक्सीजन की उपस्थिति में धातुओं के ऑक्साइड में परिवर्तित कर लिया जाता है।
2ZnS(s) + 3O2 (g) → 2ZnO(s) +2SO2(g)
② निस्तापन/भस्मीकरण - इस अभिक्रिया में अयस्कों को उच्च ताप पर धातुओं के ऑक्साइड में परिवर्तित कर किया जाता है।
ZnCO3(s) → ZnO(s) + CO2(g)
⇨ जब जिंक आक्साइड को कार्बन के साथ गर्म किया जाता है। तो जिंक धातु में अपचयित हो जाता है।
ZnO(s) + C(s) → Zn(s) + CO(g)
⇨ मैगनीज डाइऑक्साइड को ऐलुमिनियम चूर्ण के साथ गर्म किया जाता है। तो निम्न अभिक्रिया होती है।
3MnO2(s) + 4Al(s) → 3Mn(l) + 2Al2O3(s) +ऊष्मा
③ थर्मिट अभिक्रिया - आयरन (Ⅲ) ऑक्साइड [Fe2O3]के साथ एलुमिनियम की अभिक्रिया का उपयोग मशीनी पुर्जो एवं रेल की पटरी की दरारों को भरने के लिए किया जाता है। यह अभिक्रिया थर्मिट अभिक्रिया कहलाती है। इसमें धातु द्रव अवस्था में प्राप्त होती है।
Fe2O3(s) + 2Al(s) → 2Fe(l) + Al2O3(S) + उष्मा
④ विधुत -अपघटनी परिष्करण - धातुओं से अशुद्धियों को अलग करने के लिए सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली विधि विधुत -अपघटनी कहलाती है।
विधुत अपघटनी परिष्करण - इस प्रक्रिया में शुद्ध धातु की पतली परत को कैथोड तथा अशुद्ध धातु को एनोड बनाते है। धातु के लवण विलयन का इस्तेमाल विधुत -अपघट्य के रूप में होता है। विधुत अपघट्य से जब विधुत धारा प्रवाहित की जाती है। तो एनोड पर स्थित अशुद्ध धातु विधुत -अपघट्य में मिल जाती है। और इतनी ही मात्रा में शुद्ध धातु विधुत अपघट्य से कैथोड पर निक्षेपित हो जाती है। घुलनशील अशुद्धियाँ विलयन में चली जाती है। तथा अघुलनशील अशुद्धियाँ एनोड के नीचे निक्षेपित हो जाती है। जिसे एनोड पंक कहते है।
संक्षारण - धातुओं का उनकी सतह पर वायु एवं आद्रता के प्रभाव द्धारा नष्ट होना संक्षारण कहलाता है।
जैसे - लोहे में जंग लगना,चाँदी का काली पड़ना, तांबा की सतह पर हरे रंग की परत चढ़ना।
संक्षारण से सुरक्षा - पेंट करके,तेल लगाकर,ग्रीज लगाकर यशदलेपन,क्रोमियम लेपन,ऐनोडीकरण या मिश्र धातु बनाकर लोहे को जंग से बचाया जा सकता है।
यशदलेपन - लोहे या स इस्पात को जंग से सुरक्षित रखने के लिए उन पर जस्ते की पतली परत चढ़ाने की विधि को यशदलेपन कहते है। लोहे में जंग लगने से बना पदार्थ फेरिसोफेरिक ऑक्साइड [Fe2O3x H2O] होता है (X की संख्या बदलती रहती है।
अमलगम - यदि मिश्र धातु में एक धातु पारा (Hg) पायी जाती है। तो उसे अमलगम कहते है।
जैसे - Zn +Hg जिंक ऑक्साइड
⇨ प्रकृति में मुक्त अवस्था में पाई जाने वाली दो धातु क्रमशः सोना व प्लेटिनम
⇨ अधातु ऑक्सीजन से सयुक्त होकर ऑक्साइड बनाती है। जिसकी प्रकृति अम्लीय होती है।
0 टिप्पणियाँ