भ्रूणकोष या मादा युग्मकोभिद्ध का निर्माण - प्राथमिक भ्रूणकोष अर्थात सक्रिय गुरु बीजाणु अगुणित कोशिका मादा युग्मकोभिद्ध की प्रथम कोशिका होती है।यह कोशिका सक्रिय होकर गुरु बीजाणु भ्रूणकोष मातृ कोशिका का निर्माण करती है। जिसमे तीन सतत समसूत्री विभाजन होने से 8 केन्द्रकों का निर्माण होता है। जिसमे प्रथम विभाजन द्धारा बने दो केन्द्रकों में से एक -एक केन्द्रक विपरीत धुव्रों पर स्थित हो जाते है। फिर इन केन्द्रकों में से दो -दो समसूत्री विभाजन के फलस्वरूप 4-4 केन्द्रकों का निर्माण हो जाता है। इनमे से एक -एक केन्द्रक धुव्रों से स्थान्तरण होकर मध्य भाग की और स्थान्तरण होते है। जिनके आपस में सयुक्त हो जाने से द्धिगुणित केन्द्रकों का निर्माण होता है। जिसे द्धितीयक केन्द्रक भी कहते है।
❖ पी. माहेश्वरी ने भ्रूणकोष को तीन समूहों में वर्गीकृत किया है।
(1) एक बीजाणुक भ्रूणकोष - केवल एक गुरुबीजाणु भ्रूणकोष बनाता है। जैसे -पालीगोनम
(2) द्धिबीजाणुक भ्रूणकोष - भ्रूणकोष के विकास में दो गुरूबीजाणु भाग लेते है। जैसे - एलियम एण्डीमिओन।
(3) चतुष्क बीजाणुक भ्रूणकोष - सभी चारों गुरूबीजाणु भ्रूणकोष के विकास में भाग लेते है। जैसे - एडोक्सा, डुसा।
मोनोस्पोरिक भ्रूणकोष का विकास
❖ गुरुबीजाणु से भ्रूणकोषका विकास गुरुयुग्मकजनन कहलाता है।
❖सामान्यः प्रकार के भ्रूणकोष विकास का अध्ययन स्ट्रासबर्गर ने पॉलीगोनम में किया।
भ्रूणकोष की संरचना - निभाग की और स्थित तीन कोशिकीय पिण्ड प्रतिमुखी कोशिका कहलाती है। जिनका मुख्य कार्य विकसित होते हुये भ्रूण का विकास करना होता है। बीजाण्डद्धार स्थित तीन कोशिकीय पिण्ड मध्य बनी नाशपती के आकार की कोशिका अण्ड कोशिका कहलाती है। तथा पार्श्व में स्थित दोनों कोशिका सहायक कोशिका कहलाती है। जिनका मुख्य कार्य परागनलिका में भ्रूणकोष में प्रवेश करने हेतु पथ निर्माण करना होता है।
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