नर एवं मादा युग्मकोभिद्व -संरचना एवं विकास।

नर एवं मादा युग्मकोभिद्व - आवृत बीजी पादपों में पाये जाने वाले नर जननांग को नरकोभिद्व तथा मादा जननांग को मादाकोभिद्व कहते है।  
नरयुग्मकोभिद्व - पुष्प में पाये जाने वाले नर जननांग को पुंकेसर कहते है।
 

जिसके तीन भाग होता है। 

❶परागकोश(Pollensac) 

❷पुतन्तु(filament)

❸संयोजिका (Connectiv) 

                               

❶परागकोश(Pollensac)- यह पुंकेसर का मुख्य भाग होता है।जिसमे परागकण मातृ कोशिका पाई जाती है।                             

✪ पुंकेसर पुमंग का संरचनात्मक व क्रियात्मक भाग है। पुंकेसर का उर्वर भाग परागकोष कहलाता है। प्रत्येक परागकोष में दो पालियाँ होती है। जो परस्पर योजी द्वारा जुडी रहती है।     

✪ परागकोष चार लघुबीजाणुधानियाँ का बना होता है। तथा परागकोष को दिकोष्ठी अथवा  द्धिपालीय कहते है उदाहरण -अधिकांश पादप      

❷पुतन्तु(filament) - यह एक लम्बी पतली धागे नुमा संरचना होती है। जिसका मुख्य कार्य परागकोष को पुष्पासन से जोडना होता है। 

❸संयोजिका (Connectiv) - यह एक छोटी संरचना होती है। जो परागकोष तथा पुतन्तु के बीच में स्थित होती है। जो परागकोष को पुतन्तु से जोड़े रखती है।  पुंकेसर एक लघु बीजाणु धानी होती है। जिसका निर्माण लघुबीजाणु पर्ण द्वारा होता है। लघुबीजाणु धानी की अनुप्रस्थ काट के अनुसार इसकी भित्ति चार परतो में विभाजित होती है। 

 ①बाहय भित्ति   

②अन्तः भित्ति 

③मध्य भित्ति  

④टेपीटम   

①बाहय भित्ति - यह पराग  कोष की सबसे बाहरी सतह होती है। यह पतली एकल  परत के रूप में उपस्थित होती है। यह सुरक्षात्मक होती है। इस प्रकार की परत को एक्ज़ोथीसियम  कहते है। मोरस में एपिडर्मिस परिपक़्वता पर विघटित हो जाती है।  

②अन्तः भित्ति - यह एपिडर्मिस के भीतर स्थित होती है। एण्डोथीसियल कोशिकाओं में एल्फा -सेल्यूलोज से निर्मित रेशेदार स्थूलन होते है।  यह अरीय पटिटयों के रूप में प्रकट होते है। इसकी स्टोमियम कोशिकाएं आद्रताग्राही प्रकृति की होती है। 

③मध्य भित्ति - यह पराग कोष का तीसरा भित्ति स्तर है। इनकी संख्या सामान्य  1-4 व कभी कभी यह अनेक परतीय होती है। लेमनेसी तथा नाजाडेसी के सदस्यों में ये अनुपस्थित होती है। इसमें संग्रहित भोजन स्टार्च के रूप में होता है।    

④टेपीटम - यह परागकोष की सबसे भीतरी परत है। जो स्पोरोजीनस ऊतक को घेरे रहती है इसकी कोशिकाएं बड़ी बहुकेन्द्रीय तथा बहु गुणित होती है। टेपीटम के दो प्रकार है।

(a) अमीबीय या पेरिप्लाज्मोडियल या टेपीकम - इस प्रकार की कोशिकाओं की भित्ति के टूट जाने से जीवद्रव्य परागपुट कोशिकाओं में आ जाता है। जो परागकण कोशिका  मातृ कोशिका हेतु पोषण का कार्य करती है। 

जैसे - टाइफा,ट्रेटस्फेशिया आदि।  

 (b) स्त्रावी या ग्रंथिल टेपीकम - इस प्रकार की कोशिकाओं की आंतरिक सतह से पदार्थो का स्त्रावण होता है। जिसमे लिपिड प्रकति की गोलाकार संरचना पाई जाती है। जिसे युबिश्च काय कहते है।  इसके चारो और स्पोरोपोलिनिन  नामक पदार्थ का निक्षेपण होता है। जिसके कारण परागकणों की बाह्य सतहो का निर्माण होता है। जिससे परागकण चमकीले दिखाई देते है।                             

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