गुरु बीजाणु जनन - बीजाण्ड काय की उदस्य त्वचा की कोई एक कोण आकार में बड़ी स्पष्ट सघन जीवद्रव्य युक्त होकर प्रसूतक कोशिका बनती है। यह कोशिका सामान्यतः एक परिनत विभाजन के द्धारा दो कोशिकाओं में बट जाती है। जिसमें बाहरी कोण प्राथमिक भित्तीय कोशिका तथा भीतरी प्राथमिक बीजाणु जनन कोशिका कहलाती है। प्राथमिक बीजाणु जनन कोशिका तथा गुरु बीजाणु मातृ कोशिका की भाती कार्य करती है। जिसमे अर्द्ध सूत्री कोशिका विभाजन द्धारा चार अगुणित गुरु बीजाणुओं का निर्माण होता है। जो एक रेखीक क्रम में विन्यासित होते है। इसमें से तीन गुरु बीजाणुओं का उपयोग पोषण के रूप में कर लिया जाता है। तथा बचा एक गुरु बीजाणु सक्रिय होकर भूणकोश का निर्माण करता है।
यह लेप्टोस्पोरेजिंएट प्रकार का होता है। बीजाण्डद्धारीय सिरे के और की कोई भी कोशिका अन्य कोशिका से भिन्न हो जाती है। इसे आर्कीस्पोरियम कहते है।
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