लघुबीजाणु जनन की संरचना । Structure of Microsporogenesis

लघुबीजाणु जनन की संरचना (परागकण) - परागकण सामान्यतः गोलाकार होते है जिनका व्यास लगभग 25 -50 माइक्रोमीटर होता है।  प्रत्येक परागकण एक स्पष्ट भित्ती द्धारा घिरी हुई संरचना होती है। लघुबीजाणु की कोशिका भित्ती दो स्तरों की बनी होती है। बाहरी स्तर बाहय चोल (एक्जाइन )तथा भीतरी स्तर अन्त चोल (इन्टाइन) है। बाहय स्तर की भित्ति मोटी खुदरी होती है जिस पर छोटे -छोटे जनन छिद्र पाये जाते है तथा इस स्पोरोपोलिनीन के जमाव होने के कारण यह प्रतिरोधी व चमकीली होती है ,जबकि अन्त चोल एक नरम झिल्ली युक्त शर्करा होती है। जो पेन्टीन वह सेल्यूलोज की बनी होती है। कुछ पादपों के परागण  सतह पर परागकीट पाया जाता है। जो विशेष गंध वह रंग प्रदान करता है। तथा चिपचिपी परत पोलनकिट होती है,जो कीटों पर चिपकर परागण में सहायक होता है। और पराग कणों को UV विकिरणों के दुष्प्रभाव से बचती है। 

कुछ पादपों के परागण की बाहय भित्ती पर एक विशेष प्रकार का पदार्थ पाया जाता है, जो हमारे संपर्क में आते ही प्रोटीन बाहर आ जाती है। जिससे विभिन्न प्रकार की पराग अभिरंजित हो जाती है।  जैसे - काँग्रेस घास,जीनोपोडियम (बथवा) कपास। 

❖एक्जाइन (बाहरी स्तर) तीन बिन्दुओं पर अत्यंत पतली या अनुपस्थित होती है,जिन्हें अंकुरण छिद्र कहते है। 

❖परागकणों के अध्ययन को परागकण विज्ञान (पेलिनोलॉजी) कहते है। पी.के. नायर को भारतीय परागकण विज्ञान का जनक कहा जाता है। 

परागकण के पश्चात वर्तिकाग्र पर पहुँचते ही रसायन अनुचलन गति प्रारम्भं हो जाती है। जिससे प्रेरित होकर परागण का केन्द्र सक्रिय हो जाता है, जिससे इसमें समसूत्री विभाजन की प्रक्रिया द्धारा दो असमान केन्द्रों का निर्माण होता है। जिन क्रमशः कायिक केन्द्र तथा जनन केन्द्र कहते है। कायिक केन्द्र सक्रिय होकर पराग नलिका की वृद्धि को प्रेरित करता है। तथा जननिक केन्द्र द्धि-निषेचन की क्रिया हेतु नर जननिक केन्द्रों का निर्माण करता है।          

❖ कभी -कभी एक लघुबीजाणु मातृ कोशिका से चार से अधिक परागकण निर्मित होते है,इसे पोलीस्पोरी कहते है। जैसे - कस्कुटा रिपलेक्स  

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ