जनन की विशिष्ट विधियाँ । असंगजनन

 जनन की विशिष्ट विधियाँ :- सामान्यतः प्रकृति में पाए जाने वाले पादपों में कायिक एवं लैंगिक जनन पाया जाता है। लेकिन कुछ पादपों में उनके अतिरिक्त कुछ विशिष्ट विधिया पाई जाती है। जैसे -  असंगजनन   

असंगजनन :- इस प्रक्रिया में भ्रूण का निर्माण होता है। लेकिन युग्मन संलयन की प्रक्रिया नहीं पाई जाती है। यह मुख्य दो प्रकार का होता है। 

① बीजाणुभिद असंगजनन  :- इसमें बीजाण्ड में उपस्थित बीजाण्डकाय,अध्यावरण आदि कोई भी दुगनी कोशिका परिवर्तित होकर भ्रूण का निर्माण करती है। तो इसे बीजाण्डभिद्ध असंगजनन कहते है।   

② युग्मकोंदभिद्ध असंगजनन :- यदि भ्रूण का प्रवर्धन अनिषेचित अण्ड कोशिका से होता है। तो इसे अनिषेकजनन तथा भ्रूणकोष किसी अन्य अगुणित कोशिका (सहायक कोशिका,प्रतिमुखी कोशिका) तो इसे उपयुग्मन कहते है। तथा उपरोक्त दोनों को युग्मकोदभिद्ध असंगजनन कहते है। प्रोफेसर माहेश्वरी के अनुसार असंगजनन तीन प्रकार का होता है।  

❶ अनावर्ती असंगजनन :- जब गुरु बीजाणु मातृ कोशिका अर्द्धसूत्री कोशिका द्धारा चार गुरु बीजाणु बनाती है। जिसमे से एक अगुणित कोशिका विकसित होकर भ्रूणकोष का निर्माण करती है। इसके आधार पर यह दो प्रकार का होता है।   

(a) अगुणित अनिषेकजनन :- अगुणित अनिषेचित अण्ड कोशिका से भ्रूण का विकास होता है। तो इसे अगुणित अनिषेक जनन कहते है।  

(b)  अगुणित अपयुग्मन :- जब भ्रूण का विकास अगुणित भ्रूणकोष की अन्य कोशिका (अण्ड कोशिका) को छोड़कर होता है तो इसे अगुणित अपयुग्मन कहते है। 

❷ पुनरावृति असंगजनन :- जब भ्रूणकोष की द्धिगुणित कोशिका से भ्रूण का निर्माण होता है। तो इसे पुनरावृति असंगजनन कहते है। यह दो प्रकार का होता है।

 (a) जनन अपबीजाणुता :- जब प्रसूतक की द्धिगुणित कोशिका से भ्रूण का विकास होता है। तो इसे अपबीजाणुता कहते है।  

(b) कायिक अपबीजाणुता :- जब बीजाण्डकाय या अध्यावरण की द्धिगुणित कोशिका से भ्रूणकोष का  है। तो इसे कायिक अपबीजाणुता कहते है।    

 ❸ अपस्थानिक भ्रूणता :- जब भ्रूण का विकास भ्रूणकोष के बाहर बीजाण्ड की कोई भी कोशिका से होता है। तो इसे अपस्थानिक भ्रूणता कहते है।  

असंगजनन के महत्व :- 

❖ असंगजनन की क्रिया में अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन नहीं होता है। इसलिए संतति में नये आनुवांशिक गुणों का विकास नहीं होता है। इसलिए मातृ पादपों से उत्पन्न संतति में समान गुण रहते है। इसलिए यदि अच्छे गुणों वाला पादप है। तो असंगजनन की क्रिया द्धारा उन गुणों को लाया जा सकता है। 

❖ मातृ पादपों में पाये जाने वाले गौण लक्षणों को लम्बे समय तक संरक्षित रखा जा सकता है।  

❖ इस प्रकार के जनन द्धारा संकर बीज उत्पादन को सरल बनाया जा सकता है।

❖ इस विधि में युग्मन संलयन की क्रिया नहीं होती है। इसलिए नये आनुवंशिक गुणों का विकास नहीं होता है। जो एक नेगटिव कारक है। 

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