निषेचन (Fetilization) :- नर व मादा युग्मकों के संलयन से द्धिगुणित जाइगोट के निर्माण की प्रक्रिया को निषेचन कहते है। निषेचन की खोज स्ट्राँसबर्गर ने मोनोट्रापा पादप में की।
आवृतबीजी पादपों में जब परागकण परागण की क्रिया द्धारा वर्तिकाग्र तक पहुँचते है। तो रसायन उत्प्रेरण की क्रिया द्धारा परागकण अंकुरित होकर पराग नलिका का निर्माण करते है। यह पराग नलिका वर्तिका से होती हुई भ्रूणकोष से बीजाण्ड द्धार में प्रवेश कर फट जाती है। जिससे पराग नलिका में स्थित दोनों नर जनन केन्द्र भ्रूणकोष में मुक्त हो जाते है। इनमे से एक केन्द्रक अण्डकोशिका से तथा दूसरा केन्द्रक द्धितीयक केन्द्रक से संलयन की क्रिया कर द्धिनिषेचन की क्रिया पूर्ण करते है। पराग नलिका का भ्रूणकोष में प्रवेश पथ के आधार पर ये तीन प्रकार के होते है।
① बीजाण्ड द्धारी प्रवेश (Porogamy) :- यह यह सबसे सामान्य प्रकार है। जिसमे पराग नलिका बीजाण्ड में बीजाण्डद्धार से प्रवेश करती है। इस प्रकार का प्रवेश अधिकांश आवृतबीजी पादपों में पाया जाता है।
② निभागीय प्रवेश ( Chalazogamy) :- यदि निषेचन की प्रक्रिया में निभाग से होकर पराग नलिका भ्रूणकोष में प्रवेश करती है तो इसे निभागीय प्रवेश कहते है। जैसे - केजुराइना,टिटूला आदि।
③ अध्यावरणीय प्रवेश (Mesogamy) :- यदि निषेचन की क्रिया में पराग नलिका अध्यावरण क्षेत्र से प्रवेश कर भ्रूणकोष में पहुँचती है। तो इसे अध्यावरणीय प्रवेश कहते है। जैसे - कुकुरबिटा पोपुलस आदि।
द्धिनिषेचन (Double fertilization) :- आवृतबीजी पादपों में निषेचन की प्रक्रिया के दौरान एक तरफ दो नर युग्मको का संलयन एक साथ होता है। इसलिए इसे द्धिनिषेचन कहते है। द्धिनिषेचन की प्रक्रिया एक नर जनन केन्द्रक तथा एक अण्ड कोशिका से संलयन की क्रिया कर द्धिगुणित कोशिका का निर्माण करते है। जिसे युग्मजन कहते है। जो भ्रूणविकास की प्रक्रिया के दौरान भ्रूण का निर्माण करता है। तथा दूसरा नर जनन केन्द्रक भ्रूणकोष के मध्य में स्थित द्धिगुणित कोशिका से संलयन की प्रक्रिया कर त्रिगुणित कोशिका का निर्माण करता है। जिसे त्रियक संलयन भी कहते है। जो भ्रूण विकास के द्धारा भ्रूणकोष का निर्माण करती है। जिसका उपयोग बीज के अंकुरण के समय पोषण के रूप में किया जाता है।
❖ इसकी खोज एस.जी नवाश्चिन (1898) ने लिलियम तथा फ्रिटलेरिया पादपों में की तथा ग्यूगनार्ड ने इसका समर्थन किया।
❖ द्धिनिषेचन में पाँच केन्द्रक भाग लेते है।
द्धिनिषेचन के महत्व :-
(ⅰ) इसके द्धारा उर्वर बीजो का निर्माण होता है।
(ⅱ) भ्रूण का विकास भ्रूणपोष के बिना नहीं हो सकता निषेचन द्धारा होता है।
(ⅲ) इसके पश्चात अण्डाशय फल में परिवर्तित हो जाता है।
(ⅳ) यह संतति में गुणसूत्रों की द्धिगुणित संख्या को बनाये रखता है।
(ⅴ) त्रिगुणित कोशिका में ख़ाद्य पदार्थ संचित रहता है।
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