बहुभ्रूणता । Polyembryony

बहुभ्रूणता  ( Polyembryony) :- सामान्यतः एक ही बीज में एक ही भ्रूण पाया जाता है। किन्तु कभी -कभी कुछ बीजों में एक से अधिक भ्रूणों का विकास हो जाता है। जिसे बहुभ्रूणता कहते है। अर्थात बीज में एक से अधिक भ्रूणों की उपस्थिति को बहुगुणिता कहते है।

 बहुगुणिता के कारण :-

 (a) सरल बहुभ्रूणता :- एक से अधिक भ्रूणकोषों की उपस्थिति जैसे - ब्रेसिका  

(b) मिश्रित बहुभ्रूणता :- एक बीजाण्ड में एक से अधिक परागनलियों का प्रवेश तथा सहायक कोशिका या एक प्रतिमुखी कोशिका को निषेचित करना जैसे - अल्मस  

(c) विदलन बहुभ्रूणता :- एक भ्रूण का दो या अधिक भ्रूणों में विदलन या विघटन जैसे - आर्किड्स 

(d) अपस्थानिक बहुभ्रूणता :- बीजाण्ड की बीजाणुभिद्ध कोशिकाओं की सक्रियता जैसे - सिट्रस। 

बहुभ्रूणता के प्रकार :- 

➀ विदलन की बहुभ्रूणता :- यदि एक युग्मनज या परागक भ्रूण में विदलन होने से एक से अधिक भ्रूण उत्पन्न होते है। तो इसे विदलन बहुभ्रूणता कहते है। यह निम्न तीन प्रकार से उत्पन्न हो सकती है। 

(a) युग्मनज कोशिका :- यदि बहुभ्रूणता किसी युग्मनज कोशिका में अनियमित विभाजनों या विदलनों से उत्पन्न होती है। तो इसे युग्मनज कोशिका बहुभ्रूणता कहते है। 

(b) प्राक भ्रूण से :- यदि प्राक भ्रूण अर्थात प्रारम्भिक भ्रूण से भ्रूणगुणिता उत्पन्न होती है। तो इसे प्राक भ्रूण बहुगुणिता कहते है। 

(c) तन्तुमय भ्रूण से :- यदि भ्रूण की माध्यमिक अवस्था (प्रवर्धन) से बहुगुणिता उत्पन्न होती है। तो इसे तन्तुमय भ्रूण या बहुभ्रूणता कहते है। उपरोक्त तीनो प्रकार की बहुभ्रूणता युलोफिया नामक ऑर्किड में पाई जाती है। 

➁ अण्ड कोशिका के अतिरिक्त भ्रूण कोशिकी अन्य  कोशिकाओं से बहुभ्रूणता उत्पन्न होना :- अण्ड कोशिका के अतिरिक्त भ्रूणपोष में पाई जाने वाली कोशिकाये जैसे - सहायक कोशिकाये से यदि भ्रूण का निर्माण होता है। और उनमे बहुगुणिता पाई जाती है। तो इसे अतिरिक्त भ्रूणपोष कोशिकीय बहुभ्रूणता कहते है। :- जैसे आरजियोन,मैक्सिकसा  

➂ बीजाण्ड में एक से अधिक से अधिक भ्रूणपोष  का निर्माण :- बीजाण्ड में प्राकृतिक अनियमिता उत्पन्न होने से एक बीजाण्ड में एक से अधिक भ्रूणपोष  का विकास का  हो जाता है। जिसे बहुगुणिता उत्पन्न हो जाती है। जैसे - केजुराइना  

➃ बीजाण्ड में उपस्थित बीजाण्ड काय या अध्यावरण से उत्पन्न बहुगुणिता :- यदि बीजाण्ड में बीजाण्डकाय या अध्यावरण से दो या दो से अधिक भ्रूणों का विकास हो जाता है। तो इसे बीजाण्डकाय बहु भ्रूणता कहते है। जैसे - ऐरिस्टोलोकिया। 

बहुगुणिता का महत्व :-

 (1) बहुभ्रूणता से फलों का विकास अधिक होता है। 

(2) बहुभ्रूणता से उत्पन्न भ्रूण में लक्षण मादा के समान उत्पन्न होते है। 

(3) बीजाण्डकाय भ्रूण रोग रहित एवं स्वस्थ होते है।  अर्थात अपस्थानिक भ्रूणता द्धारा इनके रोग मुक्त क्लोन तैयार किये जाते है।  

❖बहुभ्रूणता को सबसे पहले ल्यूवेनहॉक (1719) ने नांरगी के बीजो में प्रेक्षित किया। 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ