मधु मक्खी पालन :- शहद व मोम की प्राप्ति हेतु औधोगिक स्तर पर मधुपालन किया जाता है। जिसे मधुमक्खी पालन या एपीकल्चर कहते है। मधुमक्खी पालन हेतु कृत्रिम छत्तों का निर्माण किया जाता है। मधुमक्खी पालन से फसलों की पैदावार अच्छी होती है। क्योंकि ये परागण की क्रिया आसानी से कर देती है । इससे प्राप्त शहद ऊर्जा युक्त होता है। तथा इसका उपयोग औषधीयो में किया जाता है। मधुमक्खी की कुछ महत्वपूर्ण प्रजातियॉ है। जिनको मधुमक्खी पालन हेतु उपयोग में लिया जाता है। जो निम्न प्रकार है।
① रॉक मधुमक्खी :- यह सबसे बड़ी मधुमक्खी होती है। जिसे सारँग मक्खी भी कहते है। इससे शहद अधिक मात्रा में प्राप्त किया जाता है।
② भारतीय मोना मक्खी :- यह आकर में छोटी मधुमक्खी होती है। तथा स्वभाव में सीधी होती है। इसे के छत्ते से 4 -5 Kg शहद प्राप्त किया जाता है।
③ भृगां मधुमक्खी :- यह आकार में सबसे छोटी व डरपोक मधुमक्खी होती है। इस के छत्तों से लगभग 250 gm शहद प्राप्त किया जा सकता है।
④ एपीमैलिफेरा मधुमक्खी :- इसको यूरोपियन मधुमखी भी कहते है। यह शांत प्रकृति की होती है। इस मधुमक्खी से 3-4 kg शहद प्राप्त किया जा सकता है।
मधुमक्क्खी का सामाजिक संघटन :- मधुमक्खी के छत्ते में तीन प्रकार की मधुमक्खी पाई जाती है।
➀ रानी मक्खी :- मधुमक्खी के पुरे छत्ते में एक बड़े आकार की रानी मक्खी होती है। जिसको रॉयल जैली नामक दिया जाता है। इसका कार्य प्रजनन का होता है। इसका विकास निषेचित अण्डे (32 गुणसूत्र ) से होता है।
➁ नर मक्खी या ड्रोन :- ये अनिषेचित अण्डों से विकसित होते है।इनका कार्य केवल अण्ड निषेचन करने का होता है।
➂ श्रमिक मक्खी :- इनकी संख्या हजारों में होती है। ये निषेचित अण्डों से उत्पन्न बन्धय मादा (जननक्षम नहीं ) होती है। छत्तों के समस्त आन्तरिक व बाहरी कार्य करते है।
जैसे :- परागकण,शहद,मधुनिर्माण,भोजन निर्माण व छत्तों की सुरक्षा।
मधुमक्खी पालन की विधि :- मधुमक्खी पालन हेतु कृत्रिम छत्तो का निर्माण किया जाता है। जिसमे कुछ दिनों तक 2/3 भाग चीनी व 1/3 जल से कृत्रिम भोजन दिया जाता है कुछ मधुमक्खिओ को पकड़कर कृत्रिम छत्तों के शिशु खण्डों में छोड़ा जाता है। जिसमें एक रानी मक्खी,कुछ श्रमिको चुना जाता है। जो इन में रहकर शहद व मोम का निर्माण करती है। अब मधुमक्खी का पालन व्यापरिक स्तर पर किया जा रहा है।
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